Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ****** *************** ****** भव्यजनकण्ठाभरणम् जानेवाला है और कोई मोक्षको ले. जानेवाला है यह सब विरुद्ध कथन उसने अज्ञानवशही किया है ॥ ६० ॥ सर्वत्र सत्यामपि दृष्टपूर्वे सम्यक्तदेवेदमिति प्रतीतौ । संमोहतो हन्त तथागतेन समभ्यधायि क्षणिकं समस्तम् ॥ ६१ ॥ ____ अर्थ- पहले देखे हुए समस्त पदार्थोंमें ' यह वही है जो पहले देखा था' इस प्रकारकी प्रतीति होनेपरभी, खेद है बुद्धने मोहवश समस्त जगतको क्षणिक (क्षण क्षणमें नष्ट होनेवाला) बतलाया ॥६॥ मनोजमद्याशनमांसलामे मानास्मितं मारजितौ रतिश्च । स्युः शोको (ख) दाविह दुर्लभेषु स्वेदश्व चिन्ताज्वरदाहमूर्छा॥६२ __ अर्थ- मारजित्को-बुद्धको काम, मद्यपान और मांस भक्षणकी प्राप्ति होनेपर घमण्ड है, और कामविकार पैदा होता है। और इनके न मिलनेपर शोक, खेद, चिन्ता, ज्वर, दाह, मूर्छा वगैरह उत्पन्न होते हैं ॥१२॥ ते दृष्टिबोधावृतिदृष्टिमोहपाकान्न पश्यन्ति शिवादयो हि । जानन्ति च श्रद्दधते यथावत्किञ्चिञ्च तन्नाल्पमिहोपदेष्टुम् ॥ ६३ ॥ ___अर्थ- किन्तु इन जीवादितत्त्वोंको शिवआदि यथार्थ नहीं देखते, नहीं जानते और श्रद्धा नहीं करते हैं क्यों कि उनके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और दर्शनमोहनीय कर्मका तीव्र उदय है । और थोडाभी न देखते हैं, न जानते हैं और न श्रद्धान करते हैं इस लिये यहां उनका कथन करना योग्य नहीं है। जो कुछ थोडा बहुत वे जानते हैं और श्रद्धान करते हैं वह यहां कथन करनेके लिये पर्याप्त नहीं है ॥ ६३ ॥ १ ल. मनोज २ ल. शोकखेदाविह ३ ल. तन्नालमिहोपदेष्टुम् ॥ For Private And Personal Use Only

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