Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भव्यजनकण्ठाभरणम् ************************* दोषा-रात्रिको करनेवाला है, उसका शरीर सफेद है ।। १०० ॥ भावार्थ- ब्रह्मपुराणमें लिखा है कि चन्द्रमा बृहस्पतिकी पत्नी ताराको हर लिया था और उससे उसको गर्भ रह गया था। इसपर देवों और दानवोंके बीचमें महायुद्ध हुआ था, उसी पापके कारण चन्द्रमा कलंकी होगया। उसमें कलंक दिखाई देता है और उसका रंगभी सफेद होगया ॥ १० ॥ सितांशुसूरौ जनिती कदाचिदीशस्य नेत्रे यदि तीतः प्राक् । भूताधिपोऽन्धो भुवनं तमस्वि नाप्यहिकामुत्रिककर्म नाम ॥ १०१॥ अर्थ- यदि ईश्वरके दो नेत्र चन्द्र और सूर्य किसी समय उत्पन्न हुए तो उससे पहले वह ईश्वर अन्धा हुआ और यह लोक अन्धकारसे पूर्ण हुआ तथा फिर इसमें इस लोक और परलोक सम्बन्धी क्रियाकर्मभी कहां रहा ? . भावार्थ- जो लोग चन्द्र और सूर्यको ईश्वरके दो नेत्र मानते हैं और उनकी उत्पत्ति बतलाते हैं उनके ऊपर ग्रन्थकार उक्त दोषका आरोपण करते हैं ॥ १०१ ॥ सितांशुसूरग्रहणे जगत्यां त्याज्यं यदि स्याज्जलमालयस्थम् । आज्यादिकं चाखिलमालयस्थमन्यत्सरस्यादि जलं च किं न ॥१०२ __ अर्थ --- जगतमें सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहणके होनेपर यदि घरमें रखा हुआ जल ग्रहण करनेके योग्य नहीं रहता तो घरमें रखा हुआ घी, दाल, आटा वगैरह तथा तालावोंका जलभी ग्रहण करनेके अयोग्य क्यों नहीं है ? भावार्थ- हिन्दू धर्मके अनुसार ग्रहणके समय घरमें रखे हुए १ ल. जगत्या. For Private And Personal Use Only

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