Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ****** भव्यजनकण्ठाभरणम् जल वगैरहको दूषित बताया गया है। प्रन्थकार कहते हैं घरका जलही दूषित क्यों हो जाता है, घरमें रखी हुई अन्य खाद्य सामग्री तथा नदी वगैरहका जल दूषित क्यों नहीं होता, ग्रहणका प्रभाव तो सभीपर होता होगा ? ॥ १०२ ॥ अङ्गारकोऽङ्गारवदुग्रवृत्तिरलं बुधोऽप्यव्रजदिन्दुकान्ताम् । अनात्मवादं गुरुरप्यकार्षीदन्धः स शुक्रः शनिरिद्धमान्द्यः ॥ १०३॥ ____ अर्थ- मंगल ग्रहको अंगारक कहते हैं सो ठीकही है, वह अंगारेकी तरहही उग्र होता है। बुध ग्रह चन्द्रमाकी पत्नीके साथ फंसा था। बृहस्पति चार्वाक मतको जन्म देनेवाला है। शुक्र अन्धा है और शनिचर देवता तो मन्दगति प्रसिद्धही हैं ॥ १०३ ॥ राहुर्मुहुः पीडितराजमित्रः क्रूरः स केतुः किल कुर्वते ते । सर्वेऽप्यनुश्वानि पदान्यवाप्य सर्वापदं दुर्जनवज्जनानाम् ॥ १०४ ॥ ___ अर्थ- राहु चन्द्रमा और सूर्यको बार बार पीडा पहुंचाया करता है, केतुभी क्रूर है। ये सभी ग्रह नीचे स्थानमें होनेपर दुष्ट मनुष्योंकी तरह मनुष्योंको सब प्रकारके कष्ट देते हैं ॥ १०४ ॥ पाणौ कथञ्चित्परिदृष्टरक्तमांसे जुगुप्सामधमोऽपि गच्छन् । न तेन भुङ्क्तेऽतनुरक्तमांसान्यन्याङ्गजातान्यपि भैरवोऽत्ति।।१०५ ___ अर्थ- हाथोंमें थोडासाभी रक्त मांस लगा हुआ देखकर नीच मनुष्यभी ग्लानि करता है और उस हाथसे खाता नहीं है। किन्तु शिवजीका पार्श्वचर भैरव दूसरोंको मारकर उनका रक्त मांस खूब खाता है ॥ १०५॥ For Private And Personal Use Only

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