Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ *************************** भव्यजनकण्ठाभरणम् दोनोंमें युद्ध हुआ। अन्तमें प्रसन्न होकर शंकरने अर्जुनको वरदान दिया। हरो मुहुः संहरति स्म लोकाननङ्गदेहं दहति स्म रोषात् । अहो छिनत्ति स्म शिरो विरिरुचेरपीडयद्रावणमङ्गुलेन ॥२०॥ ___अर्थ - शिव वार वार सृष्टिका संहार करता है, रोषमें आकर उसने कामदेवके शरीर को भस्म कर दिया था, ब्रह्माका सिर काट डाला था और अंगूठेसे रावणको पीडा पहूंचाई थी। भावार्थ - पुराणोंमें शिवको जगत् का विनाश करनेवाला माना है। शिवपुराणमें लिखा है- तारकासुरसे भयभीत होकर देवोंने ब्रह्मासे प्रार्थना की। ब्रह्माने कहा कि शिवजी के पुत्र उत्पन्न हो तो वह तारकासुर को मार सकेगा। अतः ऐसा प्रयत्न करना चाहिये जिससे शिवजी पार्वतीपर आसक्त हों। तब इन्द्रने कामको बुलाकर उसे यह भार सौपा और काम शिवको जीतनेकी प्रतिज्ञा करके उनके निकट गया। उसने जाकर अपने अमोघ बाणोंसे शिवजीके मनको चंचल कर दिया। मनकी चंचलताका कारण जानकर शिवजी एकदम क्रुद्ध होगये और तीसरे नेत्रसे निकलती हुई ज्वालाने कामदेवको जलाकर भस्म कर दिया। एक बार ब्रह्मा और विष्णुमें भयंकर युद्ध हुआ। तब महादेव बीच बचाव करने के लिये पहुंचे । उन्होंने उन दोनों के बीच में एक अग्निमय स्तम्भ प्रकट किया । उसे देखकर ब्रह्मा और विष्णु दोनों चकित हुए और उसका आदि-अन्त जाननेके लिय चल पड़े। विष्णु शूकरका रूप धारण करके नीचे की ओर गये और ब्रह्मा हंसका रूप धारण करके ऊपरकी ओर । लौटकर ब्रह्माने झूठ मूठ कह दिया कि मैं इस स्तम्भका For Private And Personal Use Only

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