Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भव्यजनकण्ठाभरणम् ** ********* ************ ****** १३ दोनों हाथोंको काट डाला तथा मित्रके-सूर्यके सम्पूर्ण दांत उखाड डाले, क्या वह वीरभद्र पृथ्वीपर पूज्य हो सकता है ? भावार्थ - शिव-पुराणमें लिखा है कि एकबार राजा दक्षने यज्ञ किया किन्तु अपने जामाता शिवको आमंत्रित नहीं किया और न अपनी पुत्री सतीकोही बुलाया। सती अपने पति शिवसे आज्ञा लेकर विना बुलायेही अपने पिताके यज्ञमें जा पहुंची। किन्तु दक्षने उसका जराभी आदर नहीं किया और न शिवको यज्ञका भागही दिया। इससे सती बहुत कुपित हुई तब दक्षने सतीके सामनेही शिवकी निन्दा की। अपने पतिकी निन्दा सतीसे सह्य नहीं हुई और उसने अग्निमें जलकर प्राणत्याग किया। यह समाचार जब कैलासपर शिवजीको मिला तो उन्होंने क्रोधमें आकर अपनी एक जटा उखाड़कर पत्थरपर दे मारी। उससे वीरभद्रकी उत्पत्ति हुई । वीरभद्रने दक्षके यज्ञमें जाकर बड़ा उत्पात मचाया । घनघोर युद्ध किया और दक्षको पकड़कर अपने दोनों हाथोंसे उसका सिर धड़से जुदा करके आगमें फेंक दिया ॥३१॥ अजः प्रियामात्ममुखान्तरालेऽप्यधत्त रागाच्चतुराननोऽभूत् । चिराय तीने तपसि स्थितोऽपि तिलोत्तमाविभ्रमदर्शनाय ॥३२॥ अर्थ - चिरकालसे तपस्यामें लीन होनेपरंभी ब्रह्मा तिलो. - त्तमाके विलासको देखने के लिये रागवश चार मुखवाला होगया और अपनी प्यारीको अपने मुखके अन्दर भी रखा । ___ भावार्थ - एक बार ब्रह्माने कठोर तपस्या की। तब इन्द्रने उसकी तपस्या भंग करने के लिये तिलोत्तमा नामकी अप्सराको भेजा। तिलोत्तमा अपने प्रयत्नमें सफल हुई और वह मुनिका ध्यान भंग For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104