Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 3 ) हिन्दू पुराणोंके वे विशिष्ट अभ्यासी रहे हो । पश्चात् आशाधरकी सूक्तियोंसे प्रभावित होकर वे जैनधर्मके अनुयायी होगये हो जैसा कि उनके ' दासो भवाम्यर्हतः ' पदसेभी ध्वनित होता है । 1 श्री नाथूरामजी प्रेमीकाभी अनुमान हैं कि अईदास नाम न होकर विशेषण जैसाही मालूम होता है । सम्भव है उनका वास्तविक नाम कुछ और हो । अस्तु; अतः उक्त पद्योंसे तो यह प्रमाणित नहीं होता कि अद्दास आशाधर के समकालीन थे। किन्तु भव्यकण्ठाभरणमें जो पद्य दिया है वह इस समस्यापर कुछ विशेष प्रकाश डालता है । पच इसप्रकार है सूक्त्यैव तेषां भवभीरवो ये गृहाश्रमस्थाश्चरितात्मधर्माः । त एव शेषाश्रमिणां सहाय्या धन्याः स्युराशाधरसूरिमुख्याः || २३६ आचार्य उपाध्याय और साधुका स्वरूप बतलाने के पश्चात् प्रन्थकार कहते हैं कि उन आचार्य वगैरहकी सूक्तियोंके द्वाराही जो संसारसे भयभीत प्राणी गृहस्थाश्रममें रहते हुए आत्मधर्मका पालन करते हैं और शेष ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और साधु आश्रममें रहनेवालों की सहायता करते हैं, वे आशाधरसूरि प्रमुख श्रावक धन्य हैं । इसमें ग्रन्थकारने प्रकारान्तरसे आशाधरजीके वैयक्तिक जीवनकी चर्चा की है और बतलाया है कि वे गृहस्थ अवस्थामें रहते हुए भी जैनधर्मका पालन करते थे तथा अन्य आश्रमवासियोंकी सहायता किया करते थे । इन अन्य आश्रमवासियोंमें स्वयं अहदासभी हो सकते हैं। और आशाधरजीकी इस परोपकारवृत्तिका साक्षात् अनुभव उन्होने स्वयं किया हो ऐसा लगता है। सूक्तिका मतलब केवल १ जैन साहित्य और इतिहास पृ. १४३ । For Private And Personal Use Only An

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