Book Title: Aradhanasar
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
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संस्तर को सम बनाकर उस पर प्रासुक तन्दुल के चूर्ण वा मसूर की दाल आदि के चूर्ण व कमल केशर से समान सीधी रेखा खींचे क्योंकि टेढ़ी रेखाएं विषम होने से संघ में उपद्रव, आचार्य का मरण आदि की सूचक होती हैं।
जिस दिशा में ग्राम हो उस दिशा में क्षपक का मस्तक कर संस्तर पर स्थापन करना चाहिए और उसके समीप मयूरपिच्छिका आदि उपकरण रखने चाहिए। संभव है, संक्लेश परिणामों से संन्यास की विराधना करके प्राण छोड़े हों और व्यन्तर आदि देवों में उत्पन्न हुआ हो। पिच्छिका आदि सहित स्वकीय शरीर को देखकर 'मैं मुनि था, मैंने व्रतों की विराधना की" ऐसा जानकर पुनः सम्यग्दृष्टि बन सकता है।
सोमसेन भट्टारक के मतानुसार - संस्तर (दाह संस्कार की भूमि) को सम बनाकर चारों ओर चार खूटी गाड़े और उनके आधार से संस्तर को मौली या लच्छा से तीन बार वेष्टित करे। पद्मासन से शव को सिर से पैर तक सुतली द्वारा माप कर उसो माप के प्रमाण संस्तर पर तीन रेखाओं द्वारा एक त्रिकोण बनावे । सर्वप्रथम भूमि पर चन्दन का चूरा डाले। फिर रोली से त्रिकोण रूप तीनों रेखाएँ डालें (टूटी एवं विषम न हो), उसके बाद उस त्रिकोण के ऊपर सर्वत्र मसूर का आटा डाले।
त्रिकोण के तीनों कोनों पर तीन उल्टे स्वस्तिक बनावे और तीनों रेखाओं के ऊपर तीनों ओर सब मिला कर नौ, सात या मध बार लिखें। त्रिकोग के मध्य में ॐ अह' लिखे। फिर ॐ हीं हः काष्ठसञ्चय करोमि स्वाहा' इस मन्त्र को पढ़कर त्रिकोणाकार ही लकड़ी जमावे, पश्चात् ॐ ह्रीं ह्रौं झों अ सि आ उ सा काष्ठे शवं स्थापयामि स्वाहा।' इति मन्त्रेण पंचामृतमभिषिञ्च्य त्रिःप्रदक्षिणां कृत्वा काष्ठे शवं स्थापयेयुः, मन्त्र का उच्चारण करते हुए पश्चातानुपूर्वी से शव का पञ्चामृत अभिषेक करके एवं तीन प्रदक्षिणा देकर शव को काष्ठ पर स्थापित करे और 'ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं अग्निसंधुक्षणं करोमि स्वाहा', यह मन्त्र बोलकर अग्नि लगावे।
आराधनायुक्त क्षपक के मरण से संघ पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह जानने के लिए, किस नक्षत्र में मरण हुआ है, यह जानना आवश्यक है। जो नक्षत्र पन्द्रह मुहूर्त के होते हैं उन्हें जघन्य नक्षत्र कहते हैं। ये छह होते हैं शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, स्वाति, आश्लेषा और ज्येष्ठा। इनमें से किसी एक नक्षत्र में या उसके अंश पर मरण होने से संघ में क्षेभकुशल होता है।
तीस मुहूर्त के नक्षत्र को मध्यम नक्षत्र कहते हैं। ये पन्द्रह होते हैं- अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, गुष्य, मघा, तीनों पूर्वा, हसा, चित्रा, अनुराधा, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती। इन नक्षत्रों में या इनके अंशों पर यदि क्षपक का मरण होगा तो एक मुनि का मरण और होगा। ____ पैंतालीस मुहूर्त के नक्षत्रों को उत्कृष्ट नक्षत्र कहते हैं। ये छह होते हैं तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा। इन नक्षत्रों में या इनके अंशों पर मरण होने से निकट भविष्य में दो मुनियों का मरण होता