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उपोद्घात
- डॉ. नीरू बहन अमीन
[1] प्रज्ञा 'मैं शुद्धात्मा हूँ' और यह देह अलग है, वह ध्यान कौन से भाग को रहता है? प्रज्ञा को।
प्रज्ञा किस प्रकार उत्पन्न होती है ? स्वरूप का ज्ञान मिलते ही प्रज्ञा प्रकट होती है। तब तक अज्ञा ही थी।
___ दो शक्तियाँ हैं । एक अज्ञा, जो जीवमात्र में है ही और ज्ञान मिलने के बाद में दूसरी शक्ति, आत्मा में से डायरेक्ट निकलती है, वह प्रज्ञाशक्ति है। प्रज्ञाशक्ति आत्मा में से बाहर नहीं निकलने देती और अज्ञाशक्ति संसार में से बाहर नहीं निकलने देती। अज्ञा से बंधन है, पाप-पुण्य है। जहाँ अज्ञा है वहाँ पर अहंकार होता ही है। यानी कि यह 'मैंने किया, मैंने भोगा' ऐसा रहा करता है। प्रज्ञा में ज्ञाता है, भोक्ता नहीं है और कर्ता भी नहीं है। जगत् में कोई भी कर्ता नहीं दिखाई दे, वह अंतिम ज्ञान है।
अज्ञा संसार के डिसिज़न लेती है और प्रज्ञा मोक्ष के।
प्रज्ञा, ज्ञान से उत्पन्न होने वाली शक्ति है। अज्ञा और प्रज्ञा दोनों आत्मा की शक्तियाँ हैं। विशेष परिणाम की वजह से अज्ञा उत्पन्न हो गई। जब तक आत्मा विशेष परिणाम में फँसा हुआ है तब तक अज्ञाशक्ति से बाहर निकल ही नहीं सकता न! जब 'खुद' 'खुद के' भान में आता है तब अज्ञाशक्ति हटती है उसके बाद प्रज्ञाशक्ति प्रकट होती है और काम करती है। उसके बाद वह संसार में नहीं घुसने देती, सावधान करती रहती है।
जड़ और चेतन के संयोग से जो विशेष ज्ञान उत्पन्न हुआ, वह अज्ञाशक्ति है।
प्रज्ञा निर्विकल्पी है, चेतन है। वह मूल चेतन है लेकिन मूल चेतन में से अलग हुई है, वह मोक्ष में ले जाने के लिए ही है। उसके बाद वापस एक हो जाती है।
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