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१४ आप्तवाणियाँ अर्थात् आत्मार्थियों के लिए वे १ से १४ गुणस्थानकों तक चढ़ने की श्रेणियाँ बन जाएँगी। अतः मूल ज्ञान तो 'मैं शुद्धात्मा हूँ' और 'पाँच आज्ञा' इनमें सभी कुछ आ जाता है लेकिन आप्तवाणियाँ इस मूल ज्ञान का डिटेल में विवरण देती जाती हैं । जैसे कि दिल्ली से किसी ने पूछा, 'नीरूबहन आप कहाँ रहती हैं?' तो हम कहेंगे कि सीमंधर सिटी, अडालज। लेकिन अगर उसे नीरूबहन तक पहुँचना हो तो उसे डिटेल में एड्रेस की ज़रूरत पड़ेगी । अडालज कहाँ पर है? सीमंधर सिटी कहाँ है? अहमदाबाद-कलोल हाइवे पर, सरखेज से गांधीनगर जाते हुए अडालज चौराहें के पास, पेट्रोल पंप के पीछे, त्रिमंदिर संकुल । इस तरह विवरण दिया जाएगा तभी वह मूल जगह पर पहुँच सकेगा । उसी प्रकार 'आत्मा' के मूल स्वरूप तक पहुँचने के लिए आप्तवाणियाँ दादाश्री की वाणी के महान शास्त्र रूपी ग्रंथ के रूप में पूर्ण विवरण देती हैं और मूल आत्मा, केवलज्ञान स्वरूपी आत्मा तक पहुँचाती हैं !
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