Book Title: Apna Darpan Apna Bimb
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ संपादकीय मन में एक विकल्प उठा-मनुष्य के पास दो आंखे हैं देखने के लिए। फिर दर्पण की आवश्कटा क्यों है? समाधान मिला-आंखें हैं दूसरों को देखने के लिए और दर्पण है स्वयं को देखने के लिए। एक प्रतिप्रश्न उभर आया-क्या व्यक्ति दर्पण में स्वयं को देखता है? समाधाता मौन हो गया। यही प्रश्न भगवान् महावीर से पूछा गया-भगवन् ! दर्पण की प्रेक्षा करने वाला जीव दर्पण को देखता है? स्वयं को देखता है या प्रतिबिम्ब को देखता है। महावीर ने कहा-वह न दर्पण को देखता है, न स्वयं को देखता है। वह मात्र प्रतिबिम्ब को देखता है। विज्ञान की भाषा हैवस्तु का प्रतिबिम्ब (रिफलेक्शन) हमारी आंखों में पड़ता है। हम वस्तु को नहीं, प्रतिबिम्ब को देखते हैं। बिम्ब का दर्शन संभव नहीं है। दर्शन का स्वर भी यही हैहम पर्याय को देखते हैं, द्रव्य को नहीं। पर्यायवाद या मायावाद को देखने का अर्थ है- प्रतिबिम्ब का दर्शन। जैन धर्म की स्वीकृति हैजिसका ज्ञान और दर्शन आवृत है, वह बिम्ब को नहीं देख सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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