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अन्तर के पट खोल
में, प्राप्त क्षण में मन का जगना जीवन और जीवन की समस्त आध्यात्मिक समस्याओं से मुक्त होने का द्वार है।
जो ऊपर उठ चुका है समय से, वह मन से भी उपरत हो चुका है। मन के पार जाने वाला ही चैतन्य-जगत् के आनंद में निमग्न होता है। ध्यान स्वयं से स्वयं का मिलन है। अपने-आप से मिलना ही ध्यान है। औरों से मिलना बहुत आसान हो गया है। स्वयं से मिलने की न हमें फुरसत है, न ही फिक्र। हम मन को वर्तमान पर केंद्रित करें और स्वयं को वर्तमान क्षण पर।
मन की शांति पाने का ध्यान से बढ़कर और कोई मार्ग नहीं है। यह मार्गों का मार्ग है, हर द्वार का प्रथम और अंतिम द्वार है।
यदि ध्यान में जीना चाहते हो, ध्यान में उतरना चाहते हो, तो अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना - दोनों न हों। दोनों को लुप्त हो जाने दो, मिट जाने दो। केवल मौन, साक्षीभाव। अपने में उतरो, तो केवल अपने होकर उतरो। अपने साथ किसी और को न ले जाओ। न पत्नी को, न पति को, न बच्चों को, न पड़ोसी को, न दुकान को, न मकान को। सबसे निरपेक्ष-निर्लिप्त होकर केवल इस मनोदशा से भीतर उतरो कि मैं स्वयं को शांतिमय बनाने के लिए, अपने-आप से मुलाकात करने के लिए स्वयं में उतर रहा हूँ, स्वयं के साथ एकाकार हो रहा हूँ। जब हमारे आमने-सामने कुछ न होगा, न आकर्षण, न विकर्षण, न शुभ, न अशुभ, न कोई चंचल तरंग; तब न तो रहेगा सागर की लहरों की तरह आता-जाता समय, और न रहेगा मन का अशांत वातावरण। ऐसे क्षणों में जो कुछ भी होगा, वह मात्र व्यक्तित्व होगा, शांति और ऊर्जस्वित स्वरूप होगा। जब कुछ भी न होगा, तभी हम ध्यान में होंगे। स्वागत है इस चैतन्य दशा का, जीवन के अमृत महोत्सव का।
कहते हैं भगवान बुद्ध वृक्ष की शीतल छाया तले आसीन थे। वे सहज अपने अंतर्मोन में तल्लीन थे। अचानक भगवान को एक रहस्यमयी मुस्कान से आपूरित देखकर भगवान के ही एक शिष्य साधक आनंद ने पूछा
भंते ! आखिर किस बात पर आप अचानक मुस्करा उठे, जबकि पूरा वातावरण शांत-मौन है।'
। भगवान ने छलछलाती नदी की ओर संकेत करते हए एक गहरी नि:श्वास छोड़ी। बोले, 'वत्स! देखते हो उसे? कल्पनाओं का इंद्रजाल तो वह लंबा-चौड़ा बुन रहा है, पर वह यह नहीं जानता कि उसकी सारी कल्पनाएँ अधूरी ही धरी रह जाएँगी। मृत्यु उसकी ओर निरंतर बढ़ रही है, पर मन की उधेड़बुन और कल्पनाओं के कोलाहल में उसे मृत्यु की पदचाप कहाँ सुनाई दे पा रही है!' ।
शिष्य-संघ ने पाया कि प्रभु की वाणी में दया और करुणा थी। सबने सुना,
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