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अंतर के पट खोल
जिसे स्वयं की सतत स्मृति है, उसके जीवन की दहलीज़ पर सदा योग का दीप प्रज्वलित रहता है।
केसी ने पूछा, मनुष्य क्या है ? मैंने कहा, ऊर्जा का समवेत स्वरूप। मनुष्य
ऊर्जा और शक्ति का संवाहक है। ऊर्जा का त्रिकोणात्मक संगम हुआ है उसमें। पहली ऊर्जा है - शरीर-ऊर्जा, दूसरी है - प्राण-ऊर्जा, और तीसरी है - आत्म-ऊर्जा। पहली ऊर्जा स्थूल है, दूसरी पहली की अपेक्षा सूक्ष्म है और तीसरी दूसरी से सूक्ष्मतर है।
आत्म-ऊर्जा की स्थिति सर्वाधिक सूक्ष्म है। वह पहली और दसरी ऊर्जा से भी अधिक सशक्त है। सच्चाई तो यह है कि आत्म-ऊर्जा के कारण ही शरीर-ऊर्जा
और प्राण-ऊर्जा का अस्तित्व होता है। आत्म-ऊर्जा का अंश न केवल मनुष्य शरीर में, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड में परिव्याप्त है।
शरीर-ऊर्जा का अनुभव प्रत्येक मनुष्य को है। शरीर के हर भाग-विभाग को छूकर/देखकर उसे जाना-पहचाना जा सकता है। मनुष्य शरीर-ऊर्जा का उपयोग भी ज्यादातर करता है। प्राण-ऊर्जा सहजतया गतिशील है। जरा श्वास-स्पर्श का अनुभव करो। श्वास ही तो प्राण है। कोई भी मिनट ऐसा नहीं होता कि साँस रुकी-थमी हो। यह ऊर्जा की हवाई भूमिका है। जीवन मात्र श्वास-ऊर्जा का नाम नहीं है। जीवन तो श्वास-ऊर्जा के भी पार है। श्वास तो जीवन की मात्र अभिव्यक्ति है, भीतर और बाहर, दोनों को जीवनवाही तत्त्वों से जोड़ने का सेतु है।
योगी दीर्घायुष्य का जीवन जीते हैं। वे श्वास को रोक भी सकते हैं। प्राणायाम की प्रक्रिया में कुंभक' श्वास को रोकना है और आश्चर्य यह है कि श्वास रुकने के बाद भी मनुष्य जीवित रहता है। यदि अभ्यास करें, तो यह प्रयोग हर कोई कर सकता है। कई योगी, संन्यासी, फकीर जमीन में समाधि ले लेते हैं और काफी समय
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