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अन्तर के पट खोल
कैसा है और कहाँ है ?
ईश्वर क्या है ? यह प्रश्न एक नास्तिक ने एक आस्तिक से पूछा। एक आस्तिक मंदिर पूजा करने जा रहा था कि उसका एक दोस्त, जो नास्तिक व शंकालु था, मिला और पूछा, 'कहाँ जा रहे हो?' आस्तिक ने उत्तर दिया, ‘मंदिर जा रहा हूँ।' उसने पूछा, 'किसलिए' ? जवाब मिला, भगवान की पूजा करने।' उसने पुन: पूछा, 'अच्छा! तो बताओ, भगवान कौन है ? वह बड़ा है या छोटा?'
आस्तिक ने श्रद्धापूर्वक उत्तर दिया, 'भगवान इतना बड़ा है कि कितने स्वर्गों के स्वर्ग उसे अपने में समा नहीं पाते और फिर भी भगवान इतना छोटा है कि मेरे नन्हे से हृदय में वह समाया हुआ है।' ..
परमात्मा अपने में है, इसलिए अपने में होना ही परमात्मा में होना है। जो परमात्मा में तन्मय है, वह सुख-दु:ख में नहीं, आनंद में है। प्रार्थना ही उसके लिए साधना बन जाती है।
घंटे के नीचे मंदिर में, खड़ी बालिका प्रभु के सम्मुख। तन्मयता से भाव-लीन हो, भूल गई ज्यों अपना सुख-दु:ख। दिखती मानो मूर्त साधना,
करती है जब मूक प्रार्थना।। संसार के हर कोने में ईश्वर के लिए प्रार्थनाएँ होती हैं। चाहे किसी धर्म-विशेष ने अनीश्वरवाद को प्ररूपित किया हो, किंतु उसके धर्म-प्रवर्तक भी उनके अनुयायियों के द्वारा परमेश्वर के रूप में ही पूजे जाते हैं। कौन उसे किस नाम से पुकारता है? नाम तो सिर्फ भाषाई संज्ञा है। चाहे जिस नाम से पुकारो, आखिर व्यक्ति उसी को पुकार रहा है जो उसकी पुकार को सुन सकता है। हर नाम में है वह अनाम। स्वार्थ को छोड़ो और धरती के बीच में आओ। वह तुमसे लेकर सारे जहाँ में फैला है। ईश्वर हमारे पास है, सबके पास है। यदि ईश्वर की सही प्रार्थना करना चाहते हो, तो सर्वेश्वर की पहचान ही काफी है। आँखें खोलो। जागना ही उसे पहचानना है।
ज्यों तिल माही तेल है, चकमक माही आग।
तेरा साई तुज्झ में, जाग सके तो जाग। जागो और निहारो – तुम्हारे ही पास है तुम्हारा साँई। भगवत्ता चारों ओर फैली हुई है। उसे पहचानो, अपने-आपको पहचानने के लिए। ___ध्यान रखो, ईश्वर को तुम जितना पुकारोगे, तुम उससे उतने ही दूर रहोगे। तुम ईश्वर को अपने में जितना अनुभव करोगे, ईश्वर की दिव्य ज्योति को तुम उतना ही करीब पाओगे। प्रार्थना में शब्द बोले जाते हैं और शब्द उच्चारित होने पर हवा में
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