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अन्तर के पट खोल
है - एकमात्र उसका साध्य-आराध्य।
उस परम अस्तित्व की संभावना घर-घर है, देह-देह, डगर-डगर है। सब में उसका नूर है और लोग ढूँढ़ते दूर हैं। वह हमारे पास है-ऐसा न कहकर यों कहूँगा कि वह हमसे दूर नहीं है। हम कली हैं, वह फूल है। भला कली और फूल में कहीं कोई फासला है ? उनमें सिर्फ खिलने का फर्क है। कली और फूल, एक ही घटना के दो चरण हैं।
___ परमात्मा को किसी भी रूप में पुकारो। उसकी उपस्थिति हर रूप में है। उसके लिए रूप का महत्त्व नहीं है, पुकार का महत्त्व है। वह राम भी है, राम के पार भी। कृष्ण भी है, कृष्ण के पार भी। महावीर और बुद्ध भी वही है। अल्लाह और ईसा भी वही है, उनके पार भी वह बसता है। यह औरों में भी है, सारे जहान में है। किसी में सोया है, तो किसी ने उसे जगा लिया। जो सोया है, वह मूर्छित है। जो जाग गया, सो पार हो गया। तीर्थंकर, बुद्ध-पुरुष, चैतन्य-पुरुष वे कहलाते हैं, जो जागें और पाएँ।
स्वयं के आनंद के लिए, स्वयं की शाश्वतता के लिए समर्पण ही हमारा संकल्प हो। आराधना की वेदी पर प्रत्येक साँस उसी के लिए न्योछावर हो, जिसके प्रति समर्पित हैं। विश्वस्त रहो, पार लगोगे। शंकाएँ डुबोती हैं, विश्वास पार लगाता है। विश्वास द्वार है। यह तो ऐसा आनंद का सागर है कि पार लगे, तो भी सौभाग्य और डूब गए, तब भी खुशकिस्मत।
तुमी सागर, आमी तरी, तुमी खेवार माझी। पार न दिया डुबावो जदि
ताते उ आमी राजी॥ हम तो सहजिया साधक हैं। हमने तो मान लिया कि तुम्हीं सागर हो और तुम्हीं खेने वाले माझी। मैं तो मात्र नौका हूँ। पार लगाओ, तो भी बलिहारी और मंझधार में डुबाओ, तो भी शुक्रिया। पाएँगे तो आखिर तुम्हें ही। पार लगे, तब भी तुम मिले और डूब गए, तब भी तुम्हीं से भेंट हुई। वे धन्य हैं, जो डूबकर पार लगे।
प्रार्थना डूबना है। जितना डूब सको, प्रार्थना उतनी ही विराट् होगी। तुम तो पा लोगे, किंतु वे ख्वाबों में ही रह जाएँगे जो सागर में उतरने से कतराएँगे। तुम उनमें डूबो, वे तुममें डूबेंगे। तुम हरि का सुमिरण करो, हरि तुम्हारा सुमिरण करने लगेंगे। तुम जैसा अपना आभामंडल बनाओगे, तुम्हें वापस वैसी ही रंगत मिलेगी। ___ एक प्यारा-सा प्रसंग है। कहते हैं कि एक बार राम नदी से पार होने के लिए
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