Book Title: Antar ke Pat Khol
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 144
________________ सहज मिले अविनाशी 143 नाव पर चढ़ने लगे। नाविक ने पूछा – 'प्रभु, तुम्हारी चरण-धूलि के स्पर्श से शिला नारी अहिल्या बन गई थी। मेरी आजीविका का एकमात्र साधन यह नाव भी अगर आपके चरण-स्पर्श से मनुष्य या नारी बन गई, तो मैं कमाने-खाने से हाथ धो बैलूंगा। इसलिए तुम्हें नाव में बैठाने से पहले मैं तुम्हारे पैर धोऊँगा।' राम मुस्कराए। उन्होंने अपने पाँव धुलाए और नाविक ने उन्हें नाव में बैठा कर नदी पार कराया। स्वाभाविक है कोई हमें पार लगाए, तो उसे मजदूरी तो चुकानी ही होगी। राम को इस बात का अहसास हुआ। उन्होंने अपनी रत्नजड़ित अंगूठी निकाली और नाविक को देने लगे। केवट ने अंगूठी देखी और वह भगवान से अनुनय करने लगा - हे नाथ! आप दया करके दुनिया को भवसागर से पार करते हैं और मैं परिवार के पोषण के लिए लोगों को नदिया से पार करता हूँ। इसलिए हम दोनों मल्लाह हैं। जैसे नाई-धोबी अपने जाति भाइयों से मजदूरी नहीं लेते और बदले में एक-दूसरे का काम कर दिया करते हैं, उसी तरह मेरा आपसे पैसे का कैसा लेन-देन ? आपको नदिया से पार लगना था, तो मैंने पार लगा दिया। जब मैं आप के घाट पर आऊँ, तो आप कृपा करके मुझे भवसागर से पार लगा देना। मैं धन्य-धन्य हो जाऊँगा। जीवन की नैया ऐसे ही पार लगती है। तुम उसकी डोर पकड़ो, वह तुम्हारा हाथ थामेगा। यदि तुम अपने आपको उससे दूर कर बैठोगे, तो वह तुम्हें तुम्हारे भाग्य पर छोड़ देगा। नाम जो रत्ती एक है, आप जो रत्ती हजार। आध रती घट संचरे, जारि करे सब छार॥ परमात्मा का तो दो मिनट का स्मरण ही मन के तमस् को दूर करने का आधार बनता है। ईश्वर का एक रत्ती नाम हजार रत्ती पापों को नष्ट करने में समर्थ है। तुम अपने हर कार्य से पूर्व ईश्वर का स्मरण करो। हर कार्य के परिणाम को परमात्मा के चरणों में अर्पित किया जाने वाला पुष्प समझ लो। तुम ताज्जुब करोगे कि तुम्हारा बुहारी लगाने का काम भी किसी की माला जपने की तरह होगा। हाथ में रखी हुई माला के मनकों से भी ज्यादा मूल्यवान है मन का मनका। इसीलिए तो कहते हैं - माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर। कर का मनका छोड़ि कै, मन का मनका फेर। भले ही गले में कंठी धारण कर ली हो या अँगुलियों पर माला लुढ़क रही हो, पर मन में निन्यानवे का चक्कर तो जारी ही रहा। इसलिए मन के मनके को, भीतर की सुरति को मूल्य दिया गया। मन में प्रभु से लौ लगाते हुए यदि दो घड़ी भी बिताई जाए, तो वे दो घड़ियाँ भी तुम्हें धन्य करेंगी। उस समय तुम्हारे मन में, तुम्हारी आँखों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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