Book Title: Antar ke Pat Khol
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 154
________________ सार-संक्षेप वह हर कार्य स्वीकार्य है, जिससे मन में शांति घटित हो; वह हर कार्य त्याज्य है, जो अशांति का निमित्त बने। वह प्रवृत्ति खतरनाक है, जिसका असर हमारी मनोवृत्तियों पर पड़े। अंधा वह नहीं है, जिसके पास आँख नहीं है। अंधा वह है, जिसके पास अन्तर्दृष्टि नहीं है। जिसे स्वयं की सतत स्मृति है, उसके जीवन की दहलीज़ पर योग का दीप प्रज्वलित रहता है। मन की वृत्तियों पर विजय प्राप्त करना संसार की सबसे बड़ी आत्म-विजय है। ज्ञान उसी का है जो उसे जिए। सत्य उसी का है जो उसे आत्मसात् करे। श्रद्धा एक अकेला ऐसा मार्ग है, जो हमें मंजिल तक पहुँचा सकता है। जीवन के सर्वोदय के लिए कर्मयोग ही प्रथम और अन्तिम द्वार है। - श्री चन्द्रप्रभ B OORDAROO Octoboolwood Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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