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तुर्या : भेद-विज्ञान की पराकाष्ठा
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अवस्था में जब हमारी इंद्रियाँ सप्त होती हैं और मन जाग्रत होता है, उस समय मन विषयों का जो सेवन करता है, उस क्रिया का नाम स्वप्न है। स्वप्न में हम कभी कोई गीत सुनते हैं, कभी कोई रूप देखते हैं, कभी स्वाद और रस का अनुभव करते हैं, कभी कोई फूल सूंघने लगते हैं, कभी किसी को गले लगा बैठते हैं और कभी किसी को चूम बैठते हैं। ये सब चीजें मन-ही-मन होती हैं। ये सब स्वप्न की लीलाएँ हैं।
कुछ दिन पहले एक संत ने किसी के घर पहँच कर कहा, 'भाई ! मैं मंदिर बना रहा हूँ। मुझे रात को देवी ने सपने में आकर कहा कि इस कार्य में सहयोग के लिए मैं तुमसे कहूँ। सो तुम एक लाख का सहयोग दो।' ___व्यक्ति चतुर निकला। उसने कहा, 'महाराज! देवी ने जो बात सपने में आकर आपसे कही है, वही आज सपने में मुझे कह दे। मेरे सपने में आकर अगर देवी ने कुछ कहा, तो मैं एक नहीं, दो लाख का सहयोग कर दूंगा।'
मनुष्य सपने के नाम पर सपने का भी दुरुपयोग करने लग जाता है।
स्वप्न स्वयं में एक झूठ है। सत्य तो यह है कि सपनों से बड़ा झूठ और कोई नहीं है, पर मजे की बात यह है कि मनुष्य जितना सच्चा स्वप्न में होता है, उतना कहीं भी और कभी भी नहीं होता। स्वप्न मनुष्य की अभिव्यक्त वासना है। जो चित्त में दबा हुआ है, सपने में वही साकार होता है। स्वप्न चित्त-साक्षात्कार है, दमित की अभिव्यक्ति है।
स्वप्न में जो देखा जाए, चित्त में उसकी संभावना न हो यह नामुमकिन है। खुली आँखों में तो जुबान बोलती है और बंद आँखों में वृत्ति/वासना। एक भूखा आदमी भगवान का सपना नहीं देख सकता। भूखे का हर स्वप्न भोजन और पकवान से जुड़ा रहता है। दिन में दुष्पूर रहने वाली तृष्णा रात को सपने में गले तक पेट भर लेती है। धनवान को धन-सुरक्षा की चिंता रहती है, इसलिए वह चोरों के सपने देखता है। पति के सपने में खुद की पत्नी कभी नहीं आती। कभी पड़ोसिन आती है, तो कभी और कोई। आदमी अपने सपने में पानी की बरसात देखता है, क्योंकि पानी की उसे चाहत है। कत्ते और बिल्ली कभी पानी की बरसात के सपने नहीं देखते। उनके सपनों में हड्डियों की, माँस की, रोटियों की बरसात होती है। जैसी मन की चाहत होती है, जो कुछ मन में दबा हुआ होता है, वही तो स्वप्न के रूप में उजागर होता है। अतृप्ति का तृप्ति के लिए किया जाने वाला प्रयत्न ही स्वप्न है। स्वप्न दमित हो चुकी भावनों से रूबरू होना है। जिसने मन में कुछ दबाया नहीं, उसे सपने कभी नहीं आ सकते।
मनुष्य बीमार रहता है, सिर्फ तन से ही नहीं, अपितु मन से भी। यदि मन
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