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तुर्या : भेद-विज्ञान की पराकाष्ठा
स्वप्न और निद्रा के सहारे अपने अंतर्मन को
पहचानना उनका सार्थक उपयोग है।
हावीर का वक्तव्य है कि मनुष्य अनेक चित्तवान है। चित्त की अनेकता को
जानना महावीर की अत्यंत मनोवैज्ञानिक खोज है। चित्त कोषागार है। संस्कारों और स्मृतियों की पर्त-दर-पर्त जमी है वहाँ । विश्व के ग्लोब जैसा ही ग्लोब है उसका। संसार एक है, परंतु देश अनेक हैं। विश्व के नक्शे में इंच-दर-इंच पर अलग-अलग राष्ट्रों की गवाही देने वाली रेखाएँ खींची हुई हैं। चित्त का नक्शा विश्व के नक्शे से भी अधिक विस्तृत है। वर्तमान ही नहीं, अपितु अतीत का समूचा इतिहास भी चित्त के पटल पर उभरता रहता है।
चित्त का अपना समाज और संसार होता है। इसकी अपनी संतानें और पाठशालाएँ होती हैं। न्यायालय और कारागृह भी इसके निजी होते हैं। यदि जन्मांतर के अतीत को न भी उठाया जाए, सिर्फ वर्तमान के ही पन्ने पलटे जाएँ, तब भी चित्त के विश्वकोश की मोटाई अथवा विशालता को चुनौती नहीं दी जा सकती।
___'चित्त' तो पुस्तकालय है। पुस्तकालय तो एक है, पर दराजें कई। एक दराज में सैकड़ों पुस्तकें और एक पुस्तक में सैकड़ों पन्ने। पुस्तकें दराजों में दर्ज हैं और दराजे पुस्तकालय में। जीवन और परिवेश के ढेरों सूत्र इसी तरीके से चित्त से जुड़े हुए रहते हैं। जितनों से मिले, जितनों को जाना, चित्त के उतने ही परमाणु सक्रिय हुए। परमाणुओं का क्या, वे तो संख्यातीत/असंख्य हैं। ___ मनुष्य का चित्त विकीर्ण है। रेगिस्तान के टीलों की तरह है वह। ऊपर से बड़ा सुहावना, पर हरीतिमा के नाम पर बिल्कुल फर स। रेगिस्तान की रेती विकीर्ण ही हुआ करती है। जब तक उसका सही संयोजन न किया जाए, तब तक वह हवाई
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