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अन्तर के पट खोल
के सामने आए हए रूप को न देखना शक्य नहीं है, पर किसी भी रूप के प्रति मन में राग-द्वेष मत आने दो। नाक के पास आए हुए गंध को न सूंघना तो संभव नहीं है, पर सावधान। किसी भी सुगंध के प्रति राग और किसी भी अरुचिकर गंध या दुर्गंध के प्रति मन में राग-द्वेष मत आने दो। जीभ पर आए हुए स्वाद का न लेना शक्य नहीं है, पर उस स्वाद के प्रति राग-द्वेष न हो, यह सजगता जरूरी है।
जीवन में सुखशांति और तनावमुक्ति का कोई गुर चाहिए, तो पतंजलि कहेंगे 'वीतराग विषयम् वा चित्तम्' – चित्त को वीतरागता का मार्ग प्रदान करो।
चित्त की स्थिरता के लिए वीतराग बेहतरीन विषय है। श्रमण-परंपरा ने तो अपना आराध्य भी उसी को चुना है, जो वीतराग है। वह तो तीर्थंकरत्व और सिद्धत्व को अनिवार्य शर्त मानता है वीतरागता की। उसके अनुसार वह हर व्यक्ति अमृतपुरुष है जो वीतराग है।
तुम वीतरागता के देवदार-वृक्ष को अपने घर में भी खिला सकते हो और साधु-संन्यासियों की तरह गृह-मुक्त होकर भी। वीतराग होने की पहल वही कर सकता है जिसने जीवन के द्वार पर मृत्यु को पल-प्रतिपल उतरते हुए देख लिया है तथा जीवन के चारों ओर लगे हुए दु:ख-दर्द के घेरे को समझ लिया है।
मृत्यु का दर्शन ही जीवन में संन्यास की क्रांति है। आगे कदम तभी बढ़ाना, जब स्वयं को काँटों में पाओ। यह बोध ही शून्य में छलाँग भरने के लिए बहुत होगा कि घर में आग लगी है और मैं लपटों के व्यूह में फँसा हूँ। आग में हो, तो आग से बाहर कूदो। बाहर सावन है। बरसाती रिमझिम है। सुरक्षा का धरातल है। सब हैं तुम्हारे साथ, पर तुम अपने फूल को उनसे ऊपर ले उठो।
परिवेश खतरनाक नहीं होता। खतरनाक परिवेश में स्वयं का प्रवेश होता है। संसार में रहना बुरा नहीं है। बुरा तो है स्वयं में संसार को बसा लेना। पानी में रहने के कारण कमल की आलोचना नहीं की जा सकती। कमल का सौरभ और सौंदर्य तो तब धूलि-धूसरित होता है, जब कीचड़ उस पर चढ़ जाता है। वीतराग को अपना विषय बना लेने वाला चित्त राग-द्वेष के कर्दम से उपरत हो जाता है। बनें वीतराग, आराध्य ही वीतराग। वीतराग, वीतद्वेष, वीतमोह - यही है मार्ग मुक्ति का, निर्वाण का, अमृत होने का। पहले वीतद्वेष होने की कोशिश हो, किसी से भी द्वेष नहीं करेंगे। फिर वीतराग, वीतमोह, राग-द्वेष पर विजय प्राप्त कर लो, तो मोह पर विजय स्वत: ही हो जाएगी। चित्त को विषय मिले वीतराग का, वीतद्वेष का। उसी को अपने ध्यान में लें, उसी को अपने अनुचिंतन में। अंतर्मन में वीतरागता को मूल्य देना ही वीतराग होने की पहली सीढ़ी है।
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