Book Title: Antar ke Pat Khol
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 121
________________ अन्तर के पट खोल छोटी घटनाओं से भी विराट् तत्त्व के आत्म-सूत्र पा लेता है। जरा कल्पना करें, जिन-जिन साधकों को बोध की प्राप्ति में, संबोधि की प्राप्ति में अनुभूति हुई, वे कैसे रहे होंगे? जो काम कोई बुद्ध - पुरुष न कर सका होगा, वही काम जीवन में घटने वाली छोटी-सी घटना कर देती है। यही तो जीवन की विशेषता है । जीवन के चारों तरफ सत्य बिखरे पड़े हैं और उनमें वेद लिखे हुए हैं। जीवन को समझने के लिए किसी वेद या उपनिषद् को पढ़ने के बजाय केवल जीवन और जगत् को ठीक-ठीक देखने की आदत डाल लें। जीवन में घटने वाली घटनाओं को समझने की मानसिकता जरूरी है। जिसे महावीर सम्यक् दृष्टि कहते हैं, बुद्ध उसे सम्यक् स्मृति कहते हैं । वही तो मौलिक चीज है। ठीक-ठीक देखने की सजगता बन जाए, तो सागर के पास जाने की ज़रूरत ही नहीं है। हर बूँद में हमें सागर केही दर्शन होंगे। जीवन में होने वाली घटनाओं से, जीवन में पाए जाने वाले अनुभवों से वह व्यक्ति बूँद में भी अपने पास सागर पाएगा। वह अपने चारों ओर वेद लिखा हुआ पाएगा। वह व्यक्ति सत्य को अपने चारों ओर बिखरा हुआ पाएगा। सत्य की साधना के लिए, जीवन की मुक्ति के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। कहीं जाकर पद्मासन लगाने की भी जरूरत नहीं है । साँसों को रोककर तपस्या करने की जरूरत भी नहीं है । समाधि का मतलब यह कभी नहीं होता कि कहीं पर जाकर चार-पाँच घंटे आँखें बंद करके बैठ जाएँ । 120 साइबेरिया में सफेद भालू होते हैं । वे दुनिया में 'आश्चर्य' गिने जाते हैं । जब बर्फ पड़ती है, तो वे भालू जमीन के भीतर चले जाते हैं। उनके चारों तरफ बर्फ ही बर्फ ढंक जाती है। वे भालू छ:-छ: महीने अपनी साँसें रोके रखते हैं। पशुओं में यह सर्वाधिक गहन प्राणायाम है, गहन समाधि है। लेकिन मैं इसे समाधि नहीं कहूँगा, क्योंकि यदि छ: माह तक साँसें रोकना ही समाधि है, तो वे भालू सबसे बड़े समाधिस्थ कहलाएँगे । आपने देखा होगा, तालाब में जब पानी कम हो जाता है, तो मेंढक अपने बिलों में चले जाते हैं और भोजन भी नहीं करते। एक दुबकी हुई चेतना में वे जमीन में दबे पड़े रहते हैं। जैसे ही वर्षा होती है, उनकी टर्र-टर्र सुनाई देने लगती है। वे चार महीने जमीन में दबे रहे, मगर वह समाधि नहीं कहलाती । समाधि का अर्थ यह है कि आप होशपूर्वक अपने में विराजमान हो जाएँ। यह मत समझना कि समाधि धारण करने से कोई देवता आपके पास आएँगे और आपकी आरती उतारेंगे। समाधि का रहस्य यह है कि आप कितने होश में है और आप अपने भीतर कितने अधिक विराजमान हैं। केवल बाहरी आवरण को रँगना समाधि नहीं है । असली समाधि तो तब होगी, जब अपने मन को रँग लोगे । 'मन न रंगा, रंगाए जोगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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