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पहचानें स्वयं को-कौन हूँ मैं
121 कपड़ा।' अगर भीतर से रँग चुके हो, तो बाहर से रँगना गौण हो जाता है। असली चीज तो भीतर से रँगना है। आदमी भीतर से तभी रंग पाता है, जब वह जीवन में घटने वाले छोटे-छोटे अनुभवों से कुछ सीखता और समझता चला जाए।
एक साधक हुए हैं - ‘च्वान सूं'। वे बड़े गहरे चीनी साधक हुए हैं। च्वान सूं एक बार अपने शिष्यों के साथ गुजर रहे थे। रास्ते में श्मशान पड़ा। च्वान सू को ठोकर लगी। नीचे झुककर देखा, तो एक हड्डी थी। वह किसी की खोपड़ी थी। उन्होंने खोपड़ी को देखा और मुस्करा दिए। उन्होंने झुककर खोपड़ी को उठाया, उसे चूमा और रवाना हो गए। उनके शिष्य हैरान । गुरुजी को यह क्या हो गया ? मरघट में पड़ी हड्डी क्यों उठाई ? एक शिष्य ने हिम्मत की। पूछा कि यह क्या माजरा है ? आपने खोपड़ी को प्रणाम क्यों किया?
च्वान सूं पहले तो मुस्कराए। फिर बोलने लगे, जब मुझे ठोकर लगी, तो तत्काल इस खोपड़ी पर मेरी नजर न पड़ी और मेरे अंतर्मन में झंकार हुई। मुझे विचार आया कि च्वान सूं! तेरी खोपड़ी की भी यही हालत होने वाली है।' यह खोपड़ी भी किसी साधारण आदमी की होती तो और बात थी, मगर यह खोपड़ी तो चीन के सम्राट् की थी। जब एक सम्राट् की खोपड़ी को आम आदमी ठोकर मार सकता है, तो जरा सोचो, अपनी स्वयं की खोपड़ी का क्या हश्र होगा! मैंने इसीलिए इसे प्रणाम किया कि च्वान सू! तेरी भी यही हालत होने वाली है। इस खोपड़ी ने मुझे अनित्यता और अशरण-स्थिति का अहसास कराया है।
कहते हैं, च्वान सूं ने उस खोपड़ी को उस दिन के बाद हमेशा अपने पास रखा। लोग पूछते तो वे कहते – 'यह खोपड़ी मेरी गुरु है। इस खोपड़ी को देखता हूँ तो मुझे यह बोध होता है कि मेरी हालत भी एक दिन ऐसी ही होने वाली है। इसने मुझे प्रेरणा दी है। इसलिए यह मेरी गुरु है।' __यह घटना तो केवल प्रतीक है। असल में मैं कहना यह चाहता हूँ कि जीवन में जो कुछ घटता है, आदमी उससे सीखे। आदमी अपने ही नहीं, अपितु दूसरों के अनुभवों से भी सीखे। तुम महान् पुरुषों के अनुभवों को चुराओ। मैंने जीसस से प्रेम चुराया है, कृष्ण से कर्मयोग, सुकरात से सत्य, राम से मर्यादा और बुद्ध से उनका मध्यम मार्ग। तुम भी कुछ अच्छी चीजें अपना लो। एक आदमी तो वह होता है जो अपने अनुभव बेकार जाने देता है। दूसरा वह है जो अनुभव बटोरता है और उनकी माला बनाता है। तीसरा वह है जो बुद्धि से काम करता है। मैं ऐसे आदमी को प्रज्ञावान मानता हूँ, जो बुद्धि से भी परे चलता है। असल में फूलों को बटोरना जरूरी है ताकि उनकी माला बनाई जा सके अन्यथा फूल तो मुरझाने वाले हैं। प्रज्ञावान तो वह है, जो मुरझाने से पहले ही उनकी माला बना लेता है। फूल मुरझाने से पहले ही
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