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ध्यान और प्रेम : जीवन के दो आनंद सूत्र
नहीं हो गए हैं, इस बात का ध्यान रखो ।
एक प्रसिद्ध दार्शनिक हुए हैं देकार्त । एक बार किसी ने उनसे दुर्व्यवहार किया, मगर देकार्त ने उसे कुछ न कहा। इस पर एक मित्र कहने लगे, 'तुम्हें उससे बदला लेना चाहिए था। उसका सलूक बहुत बुरा था । ' देकार्त नमी से बोले - 'जब कोई हमसे बुरा व्यवहार करे, तो अपनी आत्मा को उस ऊँचाई पर ले जाना चाहिए, जहाँ कोई दुर्व्यवहार उसे छू ही नहीं सकता । '
ध्यान उस ऊँचाई को जीने का राजमार्ग है। आत्मा वह तत्त्व है जिस पर हमें अपना ध्यान केंद्रित करना है। ध्यान के लिए किसी आसन या आँखों पर पट्टी बाँध की जरूरत नहीं होती। ध्यान के लिए चाहिए सिर्फ संकल्प । संकल्प जितना परिपूर्ण और उल्लास भरा होगा, ध्यान हमारा उतना ही सक्रिय होगा । आत्म-संकल्प और आत्म-निर्णय ही ध्यान का प्रथम सूत्र है ।
हमें अपनी ऊर्जा को एक बिंदु पर केंद्रित करना चाहिए। केंद्र की यात्रा के लिए हमें परिधि का मोह तजना ही होगा । ऊर्जा जितनी केंद्रित होगी, शक्ति उतनी ही सघन बनेगी। ऊर्जा का बिखराव तो चित्त की विक्षिप्तता है । इसलिए अपना ध्यान अपनी ऊर्जा को केंद्रित करने पर लगाएँ ।
महावीर और बुद्ध ने ध्यान की विधि बताई है। 'अनुप्रेक्षा' महावीर की ध्यानविधि का नाम है और 'विपश्यना' बुद्ध की ध्यान - विधि का । अनुप्रेक्षा और विपश्यना, दोनों दो नाम होते हुए भी समानांतर नहीं हैं । अनुप्रेक्षा का अर्थ है अंदर देखना । अंतर्दर्शन ही अनुप्रेक्षा है । विपश्यना भी इसी अर्थ का पर्याय है । ढाई हजार वर्षों के बाद भी इस ध्यान-विधि की महिमा और गरिमा में थोड़ा-सा भी हास नहीं हुआ है आज भी मनुष्य की अंतर्यात्रा में अनुप्रेक्षा और विपश्यना अर्थपूर्ण हैं, उपयोगी हैं।
हम बैठ जाएँ। आँखें बंद करें। शरीर और मन को तनाव न दें। अपने ध्यान श्वास पर केंद्रित करें। श्वास की यात्रा में हम नाक के ऊपर दोनों भौंहों के बीच विशेष ध्यान दें ।
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यह एक तत्त्व पर अपना ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया है । संभव है ध्यान में विचार भी उठें, ध्यान कहीं और भी चला जाए, किंतु इससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। उसे देख लें, सुन लें और फिर ध्यान को श्वास की यात्रा के साथ जोड़ दें।
विधि तो और भी कोई स्वीकारी जा सकती है । महत्त्व इस बात का है कि हम अपने लक्ष्य पर किस त्वरा के साथ जुड़ते हैं । त्वरा से जीना ही ध्यान है । जीवन के नाक का कब पटाक्षेप हो जाए, इसका कोई भरोसा नहीं है । पाँवों में मृत्यु का काँटा कभी भी गड़ सकता है। कुछ हो, उससे पहले सत्य को समझ लेना चाहिए । जीवन
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