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समर्पण की सुवास
मंदिर तो सिर्फ प्रभु की स्मृति को ताजा करने के लिए है – पेड़ पौधों को सुबह-सुबह पानी देने जैसा। परमात्मा को देखो दुनियादारी में भी, क्योंकि वह हमें वहाँ भी देख रहा है। हम न देखें, यह हमारी कमजोरी है। वह हमें हमारे हर रूप में देख रहा है। तुम प्रेम कर रहे हो, तो वह तुम्हारे प्रेम को देख रहा है। क्रोध कर रहे हो, तो वह तुम्हारे क्रोध का भी द्रष्टा है। तुम्हारी बदी का भी वह साक्षी है और तुम्हारी नेकी का भी। वह तुम्हें तुम्हारे बाथरूम में भी देख रहा है और तुम्हें तुम्हारे शृंगार रूम में भी। वह हर स्थिति का साक्षी है, इस बात का बोध रखें।।
परमात्मा लोगों की आवश्यकता नहीं बना है अभी तक। यदि तुम्हें कोई पूछे कि तुम्हारी आवश्यकताएँ कौन-कौन सी हैं, तो तुम सबसे पहले कार या मकान को बताओगे। शायद परमात्मा तो आवश्यकताओं की कतार में सबसे अंत में आएंगे। ___ परमात्मप्राप्ति की संभावना तो तब की जा सकती है, जब जीवन की आवश्यकताओं में पहली आवश्यकता परमात्मा ही बने। दु:ख में तो उसे सभी याद करते हैं। दिवाले के भय से भी उसका स्मरण कर लेते हैं, किंतु जो व्यक्ति सुख में भी और सम्राट होकर भी उसे याद करता है, उसके जीवन में किसी तरह की फरियाद हो ही नहीं सकती।
___ भक्ति प्रेम है। परमात्मा के साथ परम प्रेम से जुड़ो। दु:ख/दिवाले की गलत मनोदशा में उसे खोजना उसकी प्राप्ति का मार्ग नहीं है। लोग सुख में तो उसे भूल जाते हैं और दुःख में उसे याद करते हैं। जिसकी पहँच से तुम धनवान/सम्राट बने, उसे वास्तव में याद तो तभी करना चाहिए। वह हमें सम्राट बनाना चाहता है। उसे भिखमंगी प्रार्थनाएँ मत करो। वह हमें बहुत दे रहा है। हमारी पात्रता से ज्यादा हमें मिल रहा है। जो मिला है, उसके लिए कृतज्ञता ज्ञापित करो। प्रार्थना का यही मर्म
और यही उद्देश्य है। सर्वत्र परमात्मा की प्रतीति करो। श्वासों में उसी के प्राण पाओ और उसी के नाम पर स्वयं को समर्पित कर दो।
अगर परमात्मा से कुछ माँगना ही है, तो उससे उसके दिव्य प्रेम की एक किरण माँगो। उसके दिव्य ज्ञान की रोशनी की प्रार्थना करो। उसकी करुणा और छत्रछाया चाहो। परमात्मा का स्मरण इसलिए हो ताकि जीवन के हर कदम पर हमारा नैतिक बल हमारे पास बना हुआ रहे। कसौटी के क्षणों में हम फिसल न जाएँ, इसीलिए प्रभु-कृपा हम चाहते हैं। जीवन में भय के भी क्षण आते हैं और प्रलोभन के भी। दोनों ही स्थितियों में हमारा आत्मविश्वास बरकरार रहे, इसीलिए हम भगवान की याद बनाए रखते हैं। ___ हमारी हर सुबह की प्रार्थना हो, 'हे प्रभु! मुझ पर रहम कर। मेरे गुनाहों को माफ कर। मेरे हितैषियों का भला कर और मेरे शत्रुओं को क्षमा कर । मेरी ओर से
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