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वृत्ति, वृत्ति-बोध, वृत्ति-निरोध
उन्होंने दूर से एक वृक्ष देखा, जो फलों से लदा हुआ था। उनमें से एक राहगीर ने सोचा कि इस पेड़ को जड़ से उखाड़ दिया जाए ताकि फल तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने की जरूरत ही न रहे। भरपेट फल खाऊँगा और आगे चलते समय अपना झोला भी भर लूँगा। दूसरे राहगीर के मन में तना काटने का विकल्प बना। तीसरे ने शाखा काटने की सोची। चौथे ने डाली और पाँचवें ने फल तोड़ने का विचार किया । परंतु साथ चल रहे छठे राहगीर ने सोचा, पेड़ हरा-भरा है और फलों से लदा है। फल पेड़ की संपत्ति है । उसे भी जीने का अधिकार है । मुझे भूख लगी है, जरूर पेड़ के नीचे कुछ-न-कुछ फल पेड़ से गिरे / पड़े मिल जाएँगे। मैं उन्हें खाऊँगा और परितृप्त होकर आगे की यात्रा करूँगा।
महावीर की यह कथा प्रतीकात्मक है । वे छह राहगीरों के माध्यम से मनुष्य की अलग-अलग चित्त-वृत्तियाँ समझाने की कोशिश करते हैं । उनके 1 अनुसार जो आदमी किसी को जड़ से उखाड़ने की सोचता है, वह कलुषित है। उसकी अंतर्वृत्तियाँ काली-कलूटी हैं। तना काटने की सोचने वाला इंसान जड़ वाले की अपेक्षा कुछ म कलुषित है । यो समझिए, वह नीले रंग का है। शाखा तोड़ने की सोचने वाला
से कुछ ठीक है। समझने के लिए उसका रंग आकाशी या कबूतरी है । डाली के विकल्प वाला इन तीनों की अपेक्षा कुछ तेजस्वी है। उसका रंग ढलते सूरज की तरह है। फल के विकल्पों वाला होठों के मुस्कुराते गुलाबी रंग जैसा है। वहीं छठा राहगीर, जो वृत्तियों से स्वस्थ है, किसी को सुख देते हुए स्वयं को सुखी महसूस करता है, सत्त्वयोगी है। किसी के फलों को छीनना अतिक्रमण है। अस्तित्व की रक्षा के लिए वृक्ष स्वयं फल देता है । ऐसे वृत्ति1 - स्वस्थ लोगों के चित्त के आकाश में पूर्णिमा - सा चाँद खिला रहता है। जिसका अंत:करण साफ-सुथरा और स्वच्छ है, वह उतना ही अमल-धवल है, जितना यह हिमालय ।
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वृत्ति का यह आरोहण और अवरोहण महावीर की भाषा में लेश्या है । वृत्ति के ये छ: प्रतीक वास्तव में लेश्या के छ: सोपान हैं। योग जिसे षट्चक्र कहता है, अर्हत् उसे षट्लेश्या कहते हैं। इन लेश्याओं और छः चक्रों को हम षट् शरीर भी कह सकते हैं। आभामंडल/ऑरा की उज्ज्वलता इसी लेश्या - शुद्धि पर निर्भर है।
पर सावधान, वृत्ति उज्ज्वल भी क्यों न हो, आखिर है तो वृत्ति ही । जिसे ज्ञानियों ने निवृत्ति कहा है, वह कोई सामान्य वृत्ति से परे होना नहीं है । निवृत्ति सही अर्थों में तभी जीवन की निर्मल चेतना बन पाती है, जब व्यक्ति अमल-धवल, शुक्ल-वृत्ति से भी चार कदम आगे बढ़ जाता है। आत्म-बोध और आत्म- सर्वज्ञता का बोध, वृत्ति से मुक्त होने पर ही फलित होता है।
वृत्तियों में कुछ वृत्तियाँ शुभ होती हैं और कुछ अशुभ। अशुभ से शुभ
भली
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