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अन्तर के पट खोल
तुम प्रमाद की सीढ़ियों पर मत बैठो। सीढ़ी पर बैठना तो ठहरना है। जीवन ठहराना नहीं है, बल्कि चलते रहना है। ठहरना तो जीवंतता पर चूना पोतना है। जीवन तो श्रम है। इसलिए श्रम में अपनी समग्रता लगाओ। विश्राम जीवन की भाषा नहीं है। विश्राम तो मृत्यु का नाम है। चलना ही तो धर्म है। जो रुक गया, वह धार्मिक नहीं, अपितु अधार्मिक है। कर्म करना हमारा कर्त्तव्य है, अधिकार है। फल की चिंता मत करो, क्योंकि सही कर्म का फल कभी गलत नहीं हो सकता। ___ ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:' – यह उद्घोष श्रीकृष्ण का है। आनंदघन ने कृष्ण की परिभाषा दी है – ‘कर से कर्म कान्ह कहिए' – जो कर्म करता है, वह कृष्ण है।
कर्मयोग ही जीवन के सर्वोदय का प्रथम द्वार है।
महावीर अपने शिष्यों से यही तो बात कहते हैं कि तुम चलो। ‘उट्ठिए णो पमायए' - उठो, प्रमाद मत करो। उत्थित होने के बाद प्रमाद करना अपौरुष है। तुम उठो, जागो, सतत आत्म-जागृत रहो। प्रमाद तुम्हारा धर्म नहीं है। दो कदम आगे रखो। मुक्ति के अप्रमत्त साधक बनो।
फिजा नीली हवा में सुरूर।
ठहरते नहीं आशियां में तयूर॥ अगर जीवन का कुछ बोध हुआ है, या बोध पाने के लिए कोई अंतरभाव जगा है, तो बढ़ो। जिनके पंख लग आए हैं, वे आगे आएँ और अज्ञात में छलाँग लगाकर उसे ज्ञात करें। जहाँ हो, वहाँ बेर खट्टे हैं। आगे बढ़ो महकते बदरीवन में। 'वैली ऑफ फ्लावर्स' में आपकी प्रतीक्षा है। 'चलती का नाम गाड़ी है, खड़ी का नाम खटारा' - चलो तो ही कृतार्थ होओगे। अपना होश, अपना बोध, अपना जोश - तीनों को एक करो। विराट को पाने के लिए विराट उद्यम में संलग्न हो जाओ। साधना कोई मक्खी उड़ाना नहीं है। वह तो हमारा निर्णय है। हमारी अभीप्सा की पूर्ति के लिए माध्यम है साधना। 'सडन एनलाइटेनमेंट' समाधि और सिद्धि तत्काल हो सकती है। जरूरत है ऊँचे संकल्प की, उद्यम की, तत्परता की। मूर्छा की नींव बड़ी गहरी है। जब तक समग्रता से सतत न जुड़ोगे, तब तक वह मूर्छा जड़ से हटने वाली नहीं है। प्रयास हो परिपूर्ण । कुनकुने प्रयासों से ऊर्ध्वारोहण नहीं हो सकता।
किसी योगी ने कहा, 'परमात्मा सबकी रक्षा करता है। उसकी बात सम्राट को न रुची। सम्राट ने उसे बाँधकर बर्फीली नदी में खड़ा कर दिया। सम्राट ने तो सोचा कि शायद वह बर्फ में जमकर मर गया होगा, किंतु वह योगी सम्राट के सामने दूसरे दिन भला-चंगा खड़ा था। पूछताछ करने पर एक सैनिक-प्रहरी ने कहा- यह रात भर नदी में खड़ा उस दीए को एकटक निहारता रहा, जो आपके महल में जल
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