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अन्तर के पट खोल
सहजता और निर्लिप्तता प्रथम और अंतिम चरण है। सजगता साधना की नींव है, मुक्ति की दीपशिखा। श्वास, संवेदना और संस्कार - तीनों के प्रति सजग और सचेतन रहकर हम मूर्छा के लंगर खोल सकते हैं, मूर्छा से बाहर आ सकते हैं, सत्य और बोध की सुवास और प्रकाश आत्मसात् कर सकते हैं।
___ चित्त की एक और वृत्ति है जिसे हम स्मृति कहते हैं। यही तो वह वृत्ति है, जिसके चलते जीवन का अध्यात्म पेंडुलम की तरह अधर में लटका रहता है। जीवन वर्तमान है, पर लोग जीवन को यादों और स्मृतियों के कटघरे में ही खड़ा रखते हैं। वे या तो अतीत के अंधे कूप में गिरे रहकर काले पानी में गल-सड़ जाते हैं, या फिर भविष्य के आकाश में कल्पनाओं के चक्कर लगाते हैं।
शाश्वतता तो न केवल अतीतं और भविष्य से अपना अलग अस्तित्व रखती है, अपितु वर्तमान की उठापटक से भी मुक्त है। अतीत, वर्तमान या भविष्य जैसे शब्द शाश्वतता के शब्द-कोश में नहीं आते। उसके साथ न कभी था' का प्रयोग होता है और न कभी 'गा' का। उसके लिए तो सिर्फ 'है' का प्रयोग होता है - अतीत में भी और भविष्य में भी।
चित्त की वृत्तियाँ चंचल हैं। लक्ष्मी की तरह नहीं, अपितु लक्ष्मी से भी ज्यादा चंचल हैं। मौसम की तरह नहीं, अपितु मौसम से भी बढ़कर। तुम देख रहे हो सागर
और सरोवर की तरंगें और मैं देख रहा हूँ हवा की लहरें, पर कभी-कभी ऐसा लगता है कि चित्त का घोडा हवा से भी ज्यादा तेज बहता है। ‘अभ्यासवैराग्याभ्याँ तन्निरोधः' किंतु अभ्यास और वैराग्य से चित्त की वृत्तियों का निरोध संभव है। चित्त की स्थिरता के लिए प्रयत्न करना अभ्यास है तथा देखे और सुने हुए विषयों का उपभोक्ता होने के बजाय द्रष्टा हो जाना, उनको पाने की आशा और स्मृति से रहित हो जाना वैराग्य
पतंजलि ने जिसे अभ्यास कहा है, मैं उसी को सजगता और सचेतता कहता हँ। जहाँ जीवन, जगत् और स्वयं की मन:स्थिति तथा जगत् की विभिन्न घटनाओं के प्रति सजगता रहती है, वैराग्य की उषा धीरे-धीरे प्रगाढ़ होती चली जाती है। पता नहीं. व्यक्ति कब किस मन:स्थिति में हो और उसके समक्ष कब कौन-सी घटना घट जाए और वह घटना उसके मनोभावों को प्रेरित-प्रभावित-उद्वेलित कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता।
बुद्ध के जीवन में ऐसी ही मंगल प्रेरणादायिनी घटना घटी कि सारी सुखसुविधाओं को लात मारकर मुक्ति के मार्ग की ओर बुद्ध पराक्रमशील हो उठे। यों तो किसी बूढ़े, बीमार, मुर्दे या संन्यासी को देख लेना कोई असाधारण बात नहीं है। लोग देखते ही रहते हैं। हो सकता है कि राजा शुद्धोधन ने अपने पुत्र सिद्धार्थ को निवृत्ति-मार्ग
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