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भेद-विज्ञान : साधक की अंतर्दृष्टि - भेद-विज्ञान । यह हंस-दृष्टि है साधक की। देह अलग, चेतन अलग। देह जड़, चेतन आत्मा। जड़ तीन काल में भी जड़ ही रहता है। चेतन, तीन काल में भी चेतन ही रहता है। संयोग-संबंध के चलते जड़-चेतन एक से लगते हैं, पर तीन काल में भी दोनों एकरूप नहीं हो सकते। दोनों का तादात्म्य है, इसलिए तो देह-पोषण और भव-चक्र का प्रवर्तन जारी है। जिस दिन देह, मात्र देह रूप लगेगी, उसी दिन जीवन में चेतना की पहली किरण फूट जाएगी। जीवन में आत्मबोध का सूर्योदय होना शुरू हो जाएगा।
मैंने जिस साध्वी का जिक्र किया, उन्हें भेद-विज्ञान आत्मसात् हुआ। उसी के चलते उस दिव्य साध्वी ने देह-धर्मों पर विजय प्राप्त की और व्याधि में भी समाधि का फूल खिला लिया। कैंसर तो उनकी कसौटी बन गया। कैंसर उनके लिए सहायक बन गया। कैंसर न होता, तो शायद यह बात नहीं बन पाती। कैंसर ने तो साधना के, भेद-विज्ञान के बीज को अंकुरित करने में, फूल खिलाने में मदद की। मैं उस साध्वी के करीब रहा हूँ। मेरे जीवन में भेद-विज्ञान की जो थोड़ी-बहुत आत्मदृष्टि उद्घाटित हई, उसमें सबसे पहले उसी साध्वी का प्रभाव रहा। इसीलिए वह साध्वी मेरे लिए सदा आदरणीय रही है, उतनी ही जितना किसी के लिए गुरु-तत्त्व होता है।
मैं इस संदर्भ में गुजरात के ही एक और आत्मज्ञानी संत श्रीमद् राजचन्द्र की भी अनुमोदना करूँगा, जिन्होंने भेद-विज्ञान को बखूबी जिया। मैं उस प्रकाश-पुरुष को प्रणाम समर्पित करता है, जिसने देहातीत अवस्थाओं का आनंद लिया। महर्षि रमण, श्री अरविंद जैसे लोग ही आत्मज्ञानी संत हुए। ऐसे लोगों के लिए देह मात्र उतना ही अर्थ रखती है, जितना किसी सर्प के लिए उसकी केंचुली।
हम जीवन को ध्यान से देखें, जीवन पर मनन करें। जीवन के अतीत को देखें, उसकी प्रेक्षा और अनुपश्यना करें। वर्तमान पर जागें। स्वरूप को देखें। आप पाएँगे कि धीरे-धीरे अद्वैत बिखर रहा है। तादात्म्य, पुद्गल-भाव का घनत्व शिथिल हो रहा है। जहाँ आसक्ति, तादात्म्य, मूर्छा गिरी, वहीं अध्यात्म की रोशनी उजागर हुई। हम वैसे ही ऊपर की ओर उठे, जैसे जमीन पर पड़ा दीया प्रज्वलित होने पर ऊर्ध्वमुखी बनता है। फिर बाती चाहे हम कितनी भी नीची या उलटी करके जलाएँ, बाती से उठने वाली लौ तो सदा ऊर्ध्वमुखी ही होगी। उसकी आभा तो विस्तृत, विस्तृत और विस्तृत ही होगी।
ये बातें केवल सुनने जैसी नहीं हैं। ये जीने की बातें हैं। ज्ञान उसी का है, जो उसे जिए। सत्य उसी का है, जो उसे आत्मसात् करे।
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