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साधना के सोपान
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पर ध्यान रखें जीवन का मूल्य सर्वोपरि है।
पूँजी के अलावा लोग मूर्च्छित हैं पद के प्रति। पद सफेद झूठ है। सारे पद कुर्सियों के हैं। कुर्सी बड़ी लग गई, तुम बड़े लग गए। एक बात ध्यान रखिए कि इससे मात्र कुर्सी बड़ी हुई है, व्यक्ति बड़ा न हुआ। धन से प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी, खुशामद करने वाले मिल जाएँगे। पद मिल जाएगा, पर पद से नीचे उतरे तो? फिर कौन पूछता है ? असली प्रतिष्ठा तो भीतर है। जिसके हृदय में सत्य प्रतिष्ठित हो जाता है, परमात्मा प्रतिष्ठित हो जाता है, वह अमृत-पद का स्वामी है। श्रद्धा इसी अंतर्प्रतिष्ठा की पहल है।
कुर्सी या पद पाकर तुम बड़े कहलाए, तो तुम बौने हुए, कुर्सी महान हुई। तुम्हारे कारण पद या कुर्सी गौरवान्वित हुई, तो इसमें तुम्हारी महानता है। ओछे लोग पदों के पीछे दौड़ते हैं। महान् लोगों के पीछे पद चलते हैं। तुम्हारी महानता कुर्सी के पाने में नहीं, उसके त्याग में है। तुम्हारा महान् त्याग तुम्हारे प्रति श्रद्धा को साकार करेगा।
हम नाम या प्रतिष्ठा के पीछे पागल न बनें। हम काम में विश्वास रखें। काम स्वत: नाम देता है। जिसका केवल नाम तो है, पर काम नहीं, वह किसी भी क्षण धूल-धूसरित हो सकता है। उसके नाम की गाड़ी के चक्के कभी पंचर हो सकते हैं, हवा निकल सकती है।
मेरी समझ से हमें नाम के पीछे नहीं, काम के पीछे लगना चाहिए। व्यक्ति का काम नाम को स्थाई बनाता है। तब एक समय ऐसा आता है कि व्यक्ति तो चला जाता है, पर उसका काम उसकी याद दिलाता है।
साधना-पथ का दूसरा सोपान है वीर्य। वीर्य शक्ति का प्रतीक है, संकल्प और सामर्थ्य का परिचायक है। यहाँ वीर्य का संबंध शरीर के शुक्राणुओं से नहीं है। यह आत्म-ऊर्जा की बात है, मनोबल की। ब्रह्मचर्य उसी आत्म-ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। लोगों ने ब्रह्मचर्य को न भोगने के साथ जोड़ा है। भोग से ब्रह्मचर्य का कोई सीधा संबंध नहीं है। ऐसे कई लोग मिलेंगे, जिन्होंने कभी सहवास न किया हो, पर इतने मात्र से वे ब्रह्मचारी नहीं हो गए। वे तो अभोगी हुए। ब्रह्मचर्य अभोग नहीं है, ब्रह्मचर्य चर्या है। खुद में चलना ही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य वास्तव में ब्रह्म-विहार है। अभोगी रुका हुआ है। ब्रह्मचारी कर्मयोग और ब्रह्मयोग का संवाहक है। वह स्वयं के ब्रह्म को उपलब्ध करता है। वह अपने वीर्य/ऊर्जा को पूर्ण सत्य की प्राप्ति में लगाता है। उसने वीर्य रोका नहीं, अपितु उसका जीवन-विकास के लिए उपयोग किया। भोगी उसे नाली में बहाकर उसकी सारवत्ता व मूल्यवत्ता को असार व निर्मूल्य कर देता है। अभोगी उसे भीतर दबा लेता है। ब्रह्मचारी वीर्य की शक्ति को ऊर्ध्वगामी
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