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अन्तर के पट खोल
वाल्मीकि ने आश्रय दिया, तो ऐसा करके ऋषि ने अपने मुनित्व का ही परिचय
दिया।
तुम स्त्री के साथ संसार बसाना खतरनाक समझते हो, तो मत बसाओ, किंतु उसके लिए घृणा की कटारें भी मत चलाओ। तुम्हें खतरा कोई स्त्री से थोड़े ही है। तुम्हें अगर खतरा है तो अपने-आप से है। मन में पलने वाली, मन में दबी-पैठी अपनी कुंठित-दमित वृत्तियों से, विकारों से खतरा है। बचना है, तो उनसे बचो। वे खतरे की घंटियाँ हैं। गिरते तुम हो, स्त्रियाँ नहीं गिरातीं। उन्हें तुम निमित्त कह सकते हो। अगर निमित्त गिराता है, तो इसका मतलब निमित्त ज्यादा प्रभावी है तुम्हारा संन्यास, तुम्हारी समझ, तुम्हारा बोध, तुम्हारे संकल्प कम। अगर ऐसा है, तो स्त्रियों से जरूर तुम्हें खतरा है। पर एक बात और, फिर तुमसे भी स्त्रियों को खतरा है। फिर तो दोनों ही खतरनाक हुए। माना, वे तो खतरनाक हैं ही, कम-से-कम तुम तो खतरनाक मत बनो। तुम्हें संत बनना है, तो ऐसा बनो कि विपरीत निमित्त सदा तुम्हारी साधुता और शुद्धता की कसौटी बने। कोशाएँ तो आएँगी, विचलित भी करेंगी, पर तुम स्थूलभद्र बनो।
मेरे देखे, जो कच्चा है, वह जल ही जाना चाहिए; पर जो पक्का है, वह निखर ही आना चाहिए। ऐसे लोग भले ही गिनती के होंगे, पर वे गिनती के लोग भी वह कुछ कर जाएँगे, जो अपने बहुत होकर भी नहीं कर सकते। साधुता कठिन है, सचमुच कठिन है। साधुता का अभ्यास सरल है, पर साधुता कठिन है। जीवन की साधुता कठिन है। साधुता जीवन की आभा बने। साधुता को अंतर्जगत् में लाएँ। अपनी मानसिक दृढ़ता और आत्मशक्ति व आत्मबोध के द्वारा मन से ही निष्कासित कर दें असाधुता को, मन की हवश को।
हमारे लिए वह प्रवृत्ति खतरनाक होती है, जिसका असर हमारी मनोवृत्तियों पर पड़ता है। यदि हम प्रवृत्ति न भी करें, परंतु वृत्ति पर उसका छायांकन हो गया, तो वह जीवन-घाती है। वह साधना-मार्ग पर स्वयं को भले ही आरूढ़ समझ ले, पर दमन के मार्ग से चलने वाला पथिक उपशांत-कषायी' है। अस्तित्व की विशुद्धि के लिए उसे पुन: प्रयास करने होंगे। इसलिए जब तक वृत्ति-विकारों के दलदल में फँसे रहेंगे, तब तक जीवन की नौका संसार-सागर के पार कतई न उतर पाएगी। वह तो टूटेगी चित्त के ही किनारे-दर-किनारे से थपेड़े खा-खाकर, टकरा-टकराकर। इस तरह तो मंजिल के आसपास चक्कर काटते हुए भी मंजिल से दूर बने रहेंगे
मंजिल को ढूँढ़ते हैं, मंजिल के आस-पास। किश्ती डूबती है, साहिल के आस-पास ।
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