Book Title: Anekant 1978 Book 31 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 16
________________ महाकवि स्वयम्भू पोर तुलसीदास इसमें कहीं कठिन घनशब्दरूपी शिलातल है, कही यह भादि ने निर्मित किया था। यह सब प्रत्येक कविके अनेक अर्थरूपी तरंगों से प्रस्त-व्यस्त हो गई है और कही उद्देश्य भेद के कारण हमा है। सैकड़ों प्राश्वासरूपी तीर्थों से प्रतिष्ठित है। ___ स्वयम्भू के पउमचरिउ की रामकथा में परिवर्तन एहि रामकह तोरे सोहन्ती। गणहर देवहि दिट बहन्तो॥ स्वाभाविक है । यहाँ न केवल कवि की दष्टि मे ही भेद है, भपितु रामकथा को जैन विच रधारा के अनुकूल ढाला गोस्वामी तुलसीदास रामकथा को सरिता मानकर तो भी गया है। मानस की रामकथा के साथ-रामजन्म, चलते हैं धनुषभग, सीता-विवाह, वन-गमन, भरतमिलाप, गीताचली सुभग कविता मरिता-सी। हरण, शूर्पणखा का अपमान, खरदूषण-वध, रावण-वध राम विमनस जल भरिता-सी ।। (गम• बाल ० ३६-३८) प्रादि प्रमगो के वर्णनो मे पउमरिउ का कोई विशेष विरोध नहीं है, केवल कही नामो म भिन्नता व वर्णनशैली उसकी उपमा मरोवर में भी देते है और अनेक तरह की विविधता है। लेकिन प उमचरिउ मे स्वयम्भू की अपनी से इसका गुणगान करते है। कुछ मौलिक स्थापनाएँ भी है; जैसे-(१) राम-लक्ष्मण दोनो ही कवि गमकथा को प्रारम्भ करते ममय अपने पौर रावण को न केवल जैन धर्मावलम्बी मानना प्रपितु पूर्व के प्राचार्यों व भगवत्कृपा के प्रति अपनी कृतज्ञता विषष्टि शलाका महापुरुषो की कोटि मे रखकर बलदेव, प्रकट करते है वासुदेव और प्रतिवासुदेव मानना । (२) राक्षस और बद्धमाण, मुह-कुहर-विणिग्गय । वानर-वशो का विद्याधर वशो की भिन्न-भिन्न शाखाएँ गम कहा-णइ-एह कमागय ॥ (उ० १. २, १.) मानना । (३) दशरथ की तीन रानियों के साथ चौथी तथा .. रानी सुप्रभा को शत्रुघ्न की माता मानना। (४) राम जस कछु बुधि विवेक बल मेरे । और लक्ष्मण की अनेक पत्नियो का उल्लेख । (५) राम, तस कहिहहु हिन हरि के फेरे ॥ लक्ष्मण मोर सीता की कामदशा का वर्णन । (६) वनप्रत. काव्यमृजन के उद्देश्य एवं प्रारम्भ मे दोनो कवि वास मे जलक्रीडा प्रादि के उल्लेख । (७) लक्ष्मण द्वारा काफी साम्य रखते हैं। उनमे भिन्नता जो भी है, नही। रावण का वध तथा राम, सीता, लक्ष्मण मादि प्रमुख पात्रों के बराबर है। फिर भी खल-निन्दा और सज्जन-प्रशंसा द्वारा जिनदीक्षा का ग्रहण, इत्यादि । के बहाने तुलसीदास ने जो अपने युग का और अपनी तुलसीदास पौर स्वयम्भू की कथावस्तु मे इस तरह प्रान्तरिक भावनाओं का चित्रण किया है, वह स्वयम्भू मे साम्य, वैषम्य होते हुए भी कथा की स्वाभाविकता किसी नहीं है। मे समाप्त नहीं हुई है। दोनों जगह जो परिवर्तन व वस्तु-विन्यास भिन्नता है उसके अपने कुछ अनिवार्य कारण भी हैं। मोस्वामी तुलसीदास ने रामकथा का जो स्वरूप यद्यपि स्वयम्भू प्रौढ प्रतिभा के धनी थे किन्तु वस्तु-विन्यास है, उसका घटनाक्रम इतना प्रसिद्ध हो चुका मे वह सुघड़ता वे नही ला सके जो महाकवि तुलसीदास है कि यदि हम अन्य रामकथानों को पढ़ते हैं तो उनके के रामचरितमानस मे है । गोस्वामी जी का प्रबंध सौष्ठव परिवर्तनों पर हमें विश्वास ही नही होता। लेकिन यह तो कमाल का है।' मानना ही पड़ेगा कि रामकथा जब भी जिस किसी भाषा मे काव्य-सौष्ठव लिखी गई, कई रूपों में परिवर्तित हुई है। स्वय तुलसी- महाकाव्यगत समस्त विशेषतामों का समावेश स्वयम्भू दास की रामकथा मे वे घटनाएं व प्रसंग नही है जिनसे और तुलसीदास के प्रस्तुत ग्रन्थों में है। सध्या-वर्णन, राम के प्रादर्श में कुछ कमी माती थी मोर जिन्हे बाल्मीकि बसन्त, नदी, समुद्र, वन, युवमादि काव्योपयुक्त प्रसंगों के १. तुलसी-दर्शन -30 बनबरसाद मिश्र, पृ. ३४७ ।

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