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महाकवि स्वयम्भू और तुलसीदास
ग० प्रेमनुमन जैन सभी भारतीय साहित्य एवं दिग्गज साहित्यकारों से के निवासी थे। दोनों महाकवियों में करीब माठ सौ रामकथा अन्तरग रूप से सम्बन्धित है। देश में जब वर्षों का अन्तर है। स्वयम्भू का समय ईसा की पाठवीं कोई नया विचार, सम्प्रदाय या बोनी पाई, तो उसने सदी का प्रथम चरण माना गया है। तुलसीदास सोलहवीं रामकथा के पट पर ही अपने को प्रङ्कित किया। रामकथा सदी (सं० १५८६) मे जन्मे थे। दोनों कवियों के पुरानी बनी रही, पर माध्यम से कितनी ही नवीनताएँ पारिवारिक जीवन में कोई समानता नही है। स्वयम्भू साहित्य के वातायन से जन-जीवन तक पहुचती रही।' परम्परागत कवि थे और उनके बाद भी घराने में सृजन रामव या जन-साहित्य मे भी पल्लवित हुई है। ईसा की होता रहा । तुलसीदास की परम्परा उन्ही तक सीमित है। दूसरी तीमरी शताब्दी से लेकर १६वी शताब्दी तक प्राकृत, वे एक पूर्ण गृहस्थ तथा एक घुमक्कड साधु थे। स्वयम्भू सस्कृत, अपभ्रश और प्राधुनिक भापामो मे उसका सृजन सम्पन्न थे। तलमीदास हमेशा अपनी निर्घनता दरसाते होता रहा है । इसमे विमल सूरिकृत पउमचरिय' (प्राकृत), रहे। यथारविषेण कृत 'पद्मचरित' (सस्कृत) पौर स्वयम्भकृत
बारे ते ललात बिललात द्वार-द्वार दीन । 'पउमचरिउ' (अपभ्रंश) गमकथा की प्रमुख रचनाएं है।
जानत हो चारि फल चारि ही चनन कों॥ ये अपने पूर्व और परवर्ती रामकथा साहित्य से तुलनात्मक अध्ययन की अपेक्षा रखती हैं।
स्वयम्भू की मृत्यु और जीवन पर कोई सूचना प्राप्त ___महाकवि स्वयम्भ और तुलसीदास रामकथा के समर्थ नही है, जबकि तुलसीदास स्वय अपनी जीवनी लिखकर भाषाकवि हए है। यद्यपि इन दोनों कवियों की विषय- सं० १६८० मे काशी में मृत्यु को प्राप्त होते है। वस्त, यगचेतना, दार्शनिक-मान्यता प्रादि में बहुत अन्तर व्यक्तित्व दोनो महाकवियों का समान था। दोनों ही है फिर भी कई बातों में वे समान भी हैं । इस विषय का स्वभाव से दयालु और भावक थे तथा शारीरिक सौन्दर्य परिवेक्षण लोकभाषामों के पारस्परिक सम्बन्धों पर विशेष
की जगह प्रात्मसौन्दर्य के प्रशंसक थे। दोनों ही उत्कृष्ट प्रकाश डाल सकता है।
प्रतिभा और गहन अनुभूतियों के स्वामी थे और एक-से वयक्तिक जीवन एवं व्यक्तित्व
साहित्यकार भी। यद्यपि स्वयम्भ की रचनायें तीन हैं, ___ महाकवि स्वयम्भू और तुलसीदास के वैयक्तिक जीवन किन्तु गोस्वामी तुलसीदाग की १५-१६ रचनामों के समक्ष मे भिन्नता है, किन्तु व्यक्तित्व में समानता है। स्वयम्भू बैठने में वे समर्थ भी है। चिन्तन की मौलिकता पौर कर्णाटक, दक्षिण भारत के थे। तुलसीदास का जन्म प्राध्यात्मिकता के पुजारी होने के नाते दोनों का व्यक्तित्व राजापुर (बांदा), उत्तर भारत मे हुमा था। वे प्रवध और सन्निकट हो जाता है। १. पउमचरिउ-डा० देवेन्द्रकुमार, दो शब्द ।
४. तुलसीदास-डा० माताप्रसाद गुप्त, पृ० १६६ । २. द्रष्टव्य-डा.के.पार, चन्द्रा, 'पउमचरियं : ए स्टडी'
५. तुलसीदास और उनके ग्रन्थ, पृ० ४६ । हा. प्रार. सी. जन-रविषेणकृत पचरित का सांस्कृतिक अध्ययन
६. पउमचरित की भूमिका-हा. देवेन्द्रकुमार। डा० एस. पी. उपाध्याय-'महाकवि स्वयम्भू' ७. तुलसीदास-हा० गुप्त, पू० १४०। ३. पउमचरिउ की भूमिका-डा० भायाणी द्वारा संपादित ८. कवितावली ३, ७३ ।