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महापाण्डित श्री आशाधर कृत
अनगारधामृत
Sana
की
हिंदी टीका.
(प्रथम अध्याय.)
-onशास्त्रके प्रारम्भमें आप्तकी स्तुति करना आवश्यक है। क्योंकि
नास्तिकत्वपरीहारः शिष्टाचारप्रपालनम् ।
पुण्यावाप्तिश्च निर्विघ्नं शास्त्रादावाप्तसंस्तवात् ।। शास्त्रकी आदिमें आप्तकी स्तुति करनेसे नास्तिकताका परिहार, शिष्टाचारका पालन, पुण्यकी प्राप्ति और विनोंका अभाव अथवा निर्विघ्नतया पुण्यकी प्राप्ति होती है। अतएव श्रीमान् महापण्डित आशाधरजी परम आराध्य सिद्धभगवान, अहंत परमेष्ठी, परम आगम और उसके कर्ता व्याख्याता तथा देशना-उपदेश, इनका अपनी इष्टसिद्धिकेलिये क्रमसे और विनयसे स्मरण तथा स्तवन करते हैं:
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