Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति नारक-वर्णन
यदि संसारवर्ती जीवों को चार भागों में विभक्त किया जाय तो उनका विभाजन इस प्रकार होता हैनैरयिक, तिर्यक्योनिक मनुष्य और देव । नैरयिक जीव सात प्रकार के नरकों में रहते है। ये नरक मध्यलोक के नीचे हैं। ये नरकपृथ्वियां कही जाती हैं। उनके नाम घम्मा, वंसा, सेला, अंजना, रिष्टा, मघा और मघावती हैं। इनके रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, घूमप्रभा, तमःप्रभा और तमस्तमः प्रभा-ये सात गोत्र हैं । रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन है, शर्कराप्रभा की मोटाई एक लाख बत्तीस हजार योजन, बालुकाप्रभा की एक लाख अट्ठाबीस हजार योजन, पंकप्रभा की एक लाख बीस हजार, धूमप्रभा की एक लाख अठारह हजार, तमःप्रभा की एक लाख सोलह हजार और तमस्तमःप्रभा की मोटाई एक लाख आठ हजार योजन की है।
रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन विभाग (काण्ड) हैं-खर काण्ड जिसे रत्न काण्ड भी कहते हैं, पंक काण्ड और अपबहुल काण्ड । केवल रत्नप्रभा पृथ्वी के ही काण्ड हैं शेष पृथ्वियों के काण्ड नहीं हैं-वे एकाकार है । रत्नप्रभा पृथ्वी के एक लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण क्षेत्र में से ऊपर-नीचे के एक-एक हजार योजन भाग को छोड़कर शेष क्षेत्र में ऊपर भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवन हैं तथा नीचे नारकियों के तीस लाख नारकावास हैं। दूसरी नरकपृथ्वी के ऊपर-नीचे के एक-एक हजार योजन छोड़कर शेष भाग में २५ लाख नारकावास है। इसी तरह तीसरी पृथ्वी में १५ लाख, चौथी में दस लाख, पांचवीं में तीन लाख, छठी में पांच कम एक लाख और सातवीं में पांच नारकावास हैं।
रत्नप्रभा पृथ्वी से नीचे असंख्यात योजन के अन्तराल के बाद दूसरी शर्करा पृथ्वी है। इसके असंख्यात हजार योजन नीचे बालुका पृथ्वी है। इस तीसरी पृथ्वी का तल भाग मध्यलोक से दो राजु प्रमाण नीचा है। तीसरी पृथ्वी से असंख्यात हजार योजन नीचे जाने पर चौथी पंकप्रभा पृथ्वी है। इस पृथ्वी का तल भाग मध्यलोक से तीन राजु नीचा है। इससे असंख्यात हजार योजन नीचे जाने पर पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी है । इसका तल भाग मध्यलोक से. चार राजु नीचे है। पांचवीं पृथ्वी से असंख्यात हजार योजन नीचे जाने पर छठी तमःप्रभा पृथ्वी है। इसका तल भाग मध्यलोक से पांच राजु नीचे है। छठी पृथ्वी से असंख्यात हजार योजन नीचे जाने पर सातवीं तमस्तमःप्रभा पृथ्वी है। इसका तल भाग मध्यलोक से छह राजु नीचा है । सातवीं पृथ्वी के नीचे एक राजु प्रमाण मोटा और सात राजु विस्तृत क्षेत्र हैं वहाँ केवल एकेन्द्रिय जीव ही रहते हैं।
ये रत्नप्रभा आदि पृथ्वियाँ घनोदधि, घनवात, और तनुवात पर आधारित हैं। इनके नीचे अवकाशान्तर (पोलार) है। सात नरकों और उनके अवकाशान्तर में पुद्गलद्रव्यों की व्यापक स्थिति है । रत्नप्रभा से लेकर समस्त तमस्तमःप्रभा पृथ्वी तक सबका आकार झालर के समान बताया है।
तदनन्तर सात नरकों से चारों दिशाओं में लोकान्त का अन्तर बताया गया है। रत्नप्रभादि सातों नरकों में सब जीव कालक्रम से उत्पन्न हुए हैं और निकले हैं क्योंकि संसार अनादि है। रत्नप्रभादि कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचिद् अशाश्वत हैं द्रव्यापेक्षया शाश्वत और पर्यायापेक्षया अशाश्वत हैं।
___ नरकावासों के संस्थान, आयाम-विष्कंभ, परिधि, वर्ण, गंध और स्पर्श का वर्णन करते हुए उनकी अशुभता बताई है। चार गतियों की अपेक्षा गति-आगति, उनके श्वासोच्छवास के पुद्गल, आहार के पुद्गल, लेश्याएँ, ज्ञान, अज्ञान, उपयोग, अवधिज्ञान का प्रमाण, समुद्घात, सात नरकों में क्षुधा-पिपासा आदि की वेदना,
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