Book Title: Agam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सप्तमांग-उपाशक दशा सूत्र 486
यणा पण्णत्ता, पढमस्सणं भंते ! अझयणरस समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्रे पण्णत्ते ? ॥ २ ॥ एवं स्खल जंबु ! तेणंकालेगं तेणंसमएणं वाणियगामे नाम नयरे होत्था वण्णओ ॥ तस्सणं वाणियगामस्स जयरस्स बहिया उत्तर पच्छिमेणं ईईपलासे णाम चेइएहोत्था ॥ तत्थणं वाणियगामरस णयरस्स जियसत्तूणाम रायाहोत्था वण्णओ ॥ तत्वणं वाणियगामे आणंदेणाम गाहावई परिवसइ अढे जाव
अपरिभूए ॥ ३ ॥ तस्सणं अणंदस्स गहाईस्स चत्तारि हिरण्णकोडिओ निहाण श्रमण भगवंत श्रीमहावीर स्वामीने प्रथम अध्ययन का किरूप्रकारका अर्थकहा ॥२॥ यो निश्चय, हेज उस काल उस समय में वाणिज्य ग्राम नाम का नगर था. उस वाणिज्य ग्राम नगर के बाहिर उत्तर दिशा के मध्य ईशान कौन में शुति पलास नामे यक्ष का यक्षालय बगीचे युक्त था. तहां वाणिज्य ग्राम नगर का जिसशत्रु नाम का गजा राज्य करता था, वह भी कोणिक राजा के जैसा वर्णन योग्य था. वहां वाणिज्य ग्राम नगर में आणंद नाम का गाथापति रहता था. वह ऋद्धिवंत यावत् अन्य से अपराभवित14 थाः उस की जाति में उस के समान धनवान ऐश्वर्यवान अन्य कोई भी नहीं पा ॥३॥ उस आणंद
१ जिसके खेती और व्यपार दोनों प्रकार के रुजगार हो उसे गाथापति कहते हैं. यह बुद्ध कथन है.
आणंद श्रावक का प्रथम अध्ययन 488+
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