Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 33
________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात (१३) Cw HINDO सूत्र ९ : भंते ! उन भगवान महावीर ने यह जो उत्क्षिप्त ज्ञात से पुण्डरीक पर्यन्त उन्नीस अध्ययनों का उपदेश दिया है उनमें से प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? 9. Bhante! Out of these nineteen chapters what is the text and meaning of the first chapter as preached by Shraman Bhagavan Mahavir. कथारम्भ ___ सूत्र १0 : एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समए णं इहेव जंबुद्दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे रायगिहे णामं नयरे होत्था, वण्णओ। गुणसीले चेइए वण्णओ। तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए णामं राया होत्था महया हिमवंत. वण्णओ। तस्स णं सेणियस्स रण्णो णंदा णामं देवी होत्था सुकुमालपाणिपाया वण्णओ।। सूत्र १0 : हे जम्बू ! समय के उस भाग में जम्बू द्वीप के भारतवर्ष के दक्षिण भरत नामक क्षेत्र में राजगृह नामक नगर था। इस नगर के बाहर गुणशील नामक चैत्य था (इस नगर और चैत्य का वर्णन औपपातिक सूत्र में उपलब्ध है)। राजगृह नगर में श्रेणिक नाम का राजा राज्य करता था। ऐसा वर्णन है (औपपातिक सूत्र में) कि वह राजा महाहिमवंत पर्वत के समान गुण वाला था। श्रेणिक राजा की नन्दा नामक रानी थी जो सुकुमार अंगों वाली थी। THE STORY 10. Jambu! During that period of time there was a town named Rajagriha in the south Bharat area of Bharatvarsh in the Jambu continent. Outside this town was a temple named Gunashil Chaitya. King Shrenik was the ruler of Rajagriha. It is said that the virtues he possessed were as lofty as the Himalayas. King Shrenik had a beautiful queen named Nanda. (as detailed in the Aupapatik Sutra) सूत्र ११ : तस्स णं सेणियस्स पुत्ते णंदादेवीए अत्तए अभए णामं कुमारे होत्था; अहीण जाव साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-णीति-सुप्पउत्तणय-विहण्णू, ईहा-वूह-मग्गणगवेसण-अत्थ-सत्थमई, विसारए, उप्पत्तियाए, वेणइयाए, कम्मयाए, पारिणामियाए चउव्विहाए बुद्धीए उववेए, सेणियस्स रण्णो बहुसु कज्जेसु य, कुडुंबेसु य, मंतेसु य, गुज्झसु य, रहस्सेसु य, णिच्छएसु य, आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे, मेढी, पमाणं, आहारे, आलंबणभूए, पमाणभूए, आहारभूए, चक्खुभूए, सव्वकज्जेसु य, सव्वभूमियासु ANING GANA CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA (13) A Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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