Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 333
________________ १३५६ सो दिट्टिकरण दिद्विनिव्वत्ति दिट्ठिपडिघात दिट्ठिवाय [अंगसुत] दिट्ठीविस दिणकर = दृप्त पिट्ठ - पंतीए ५०६-१०, ५३२-९, ७०८१९, ७०९-१, ८४९-६, ८५४-६, ८९१-५, ९०४-४, ९१२–११, ९४०-९, १०७१ ४, १०७४- २३ ७०८-१६ ७६३-१७, ७६४-१२ ९१–१८, ५४३-८ दियर दिण्ण ९१–२, २७६-१ दित्त = दीप्त - प्रसिद्ध १०० - २, १३०-१६, १४४–९, ४५०-६, ४५६-६ ७६३-१० २-८ ३६८-१ १४९–६ ८९-१४, ९०–६, २२५-१९, २२६-१ ६९-१७, ६४०-१६ ११८७-१० १८४ -१, १८६-१९, १८७–६, ५१९–१६, ५३४८, ५३५-१, ५४६-११, ५४८-९, ५५२-१६, ६९२१५, ७३३-११, ७५२ – १४, ११८४ -८, ११८५-३, ११८६ - १ ८-३, ११-२ ५३४-८ १२६-१३, १२९-१४, १३० - ७, १३४-८, १३७-८, १४१ - तः १४४ पृष्ठेषु, १४६ ३, १५०-२, १५४-२, ३११ " दित्ततव दिन्न दिप्पंत दिया = दिवा - दिवसे दिवड्ढ दिवड्ढखेत्त दिवस १८३-१ विइयं परिसि सो दिवसपुहत्त दिवसप्पमाणकाल दिव्व १२१-२, Jain Education International ८५१-३ ८४९-३ १४९-३ ७६४-२, ८७७-१९ ८७८- २४, ९८७-८ पिट्ठ- पंतीए ९, ४९८-४, ५५३-१६, ६०१-१, ६७३-२, ६७४ - १, ६८१-१, ६८२-७, ६९५६, ६९९-१७, ७०३-११, ७१२-३, ७१३-२, ७४९-४. ७५५ तः ७५८ पृष्ठेषु, ७६० ७, ८००-७ १३६-२२ दिव्वभाव * दिस = दृश् दिस्स दिस = दिशा दिसा ३५-४, ९७ ८२३-२१ ४८५-३ २, १०१-१५, १२९१३, १४६ - २, १८८-१६, २९३-१२, ४७५-४, ४८५१३, ४८६–२, ४८७-१, ५२०-११, ५२१-१७, ५२२१, ५२४ - १२, ५२७ - २५, ५३०-१३, ५३१-१२, ५५५१३, ५५६-१८, ६२९-१६, ६३०-३, ७४९-४, ७५६-२, ७५८-९, ७६८-४, ७६९-२ १७५-१, १७७-२, ७७२-१६ दिसाकुमार दिसा [ कुमार ] ७४३-४ दिसाकुमारि महत्तरिया ५३०-१२ दिसाकुमारी १७५-१, ५३१-११ ५१८-३, ५२२-९ ६८९-१८, ६९०-१, ७०४-६ दिसाचकवाल +'य दिसाचर दिसापोक्खियतावस दिसापोक्खियतावसत्ता ५१८-१, ५२०-३ दिसा सोवत्थियासण ५१७-२ ५५०-१० दिसि ७४ १०, १०५-७, १२९-१४, १३५-७, १३६-७, १४०-२०, १५०-२१, १९९-२३, ९७३ २१, ९७५-१ १४७-१९, ६४१-१९, ७५२-४ २८०-२६ दिसिभाग-भाय दिसि व्वय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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