Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 467
________________ १४९० सो वीसइम वीसति वीसतिपएसिय वसतिपए सोगा वीसतिम तम [भ] वीसत्थ वीसपुहत्त वीससा = विस्रता - स्वभावेन ८८९-१६ ९०-३ ५३९-६, ५६२-२० १०५५-१५ २६–१७, २३४-३, २३५-८ वीससाए = विस्रसातः - स्वभावतः १४५ - २२ २०८-९, २७६-४, ६७७१५, ७७४-१८, ७७५-९ ३१९-११, ३२६१५, ३३० तः ३३३ पृष्ठेषु वीससा परिणत - णय ३७९-९, ८०६–३ वीससाबंध वीसा वीसादेमाण वीहि = वीथि = त्रीहि "" वुइअ : = व्युक्त १५० - ३ २५८-१७, ६७८-३, ८९०-११, ८९१-६ १२०-१२, १२१-१३, १२४-८, १२५-१९, १२७३, १२८- ६, २२८-४ वुइद = पृ० १२१ टि० १ बुग्गामाण ४७९ - १९,४८१-१, ७२६-१० * च - वुच्चइ १४–४, वुट्ठ टिकाइय बिइयं परिसि ६३३-८, ११२७-१, ११३०-१५ १३१-२३ "" - वुच्चति वुच्चमाण * बुज्झ = वहू - वोज्झिहिंति वुटु = वृष्ट पिट्ठ- पंतीए ११८४-९ २९५-७ ९८०-२० ވ Jain Education International १५–१७, ५९-२, १५६-८ ११-१२, ४८-१, २२६-११ ७८-३ २९५-१२ ३११-९, ६९४-२०, ६९५-६, ७३३-१४ १७१-३, १७५–७, ६९९-१ ६६२-१२ पिट्ठ - पंतीए १९७-६, ६६२-४ १३४-२३, ३०४-८, ४५१-४, ५४६-५, ६४३२४, ७०२-१, ८१९-२१ वुप्पाएमाण ४७९ - १९, ४८१ - १, ७२६-१० वूह = व्यूह - समुदाय ७८-१९, ५५२-६ * वेअ = वेदय् - वेति * वेअ = वेप् - वेयति वुट्टिकाय वुत्त = व्युक्त - उक्त वेइअ = वेदित |वेइज्जमाण = वेद्यमान वेश्य = वेगयुक्त वेश्या = वेदिका ११०-१४, " ८४४-१ २१०–२० ३-६ ५४२-३ १११-६, १४८-१० door [का]] ६४९ - १५ ३२४- २४ [पयोगपरिणय ] वेव्वियपोग्गलपरियह ५८२-८, ५८३-११, ५०४ - २१, ५८६-८, ५८७-४ वेडव्वियपोग्गल परियनिव्वत्तणाकाल ५८६ - १८ asia [का] asव्वयमीसासरी रकायजोय वेव्वियमीसासरीर कायप्पयोगपरिणय' ६४९ - २५ ९७१-१० For Private & Personal Use Only " ३२७-१९, ३२९-१७ वेडव्विलद्धि ५४-१०, १६७-३, १६८-३ वेव्विलद्धीय १६६-५, १६७-८ asoor मुग्धात १२०- ३, १२१–५ asव्वयसमुग्धाय ५४–११, १३४-६, १४७--१४, १५९-४, १६३१०, ७८८-२१, ११३५-८ ९५९ - १४ वेडव्विय[समुग्धाय ] वेडव्वियसरीर ३७-१९, ३२३-७, ३३५५, ३६६-१, ३८५-१६, ३९०-२२, ३९५-१२, ३९७-५, ५८५-३, ५८६८, ७४६-१७, ७७६–११, ९७५-४ www.jainelibrary.org

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