Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 501
________________ १५२४ बिइयं परिसिटुं सहो पिट्ठ-पंतीए । सहो पिट्ठ-पंतीए संपरिक्खित्त १११-७, ६४०-१६ संभोग= संभोग-समानधार्मिकाणां , संपरिखुड १०१-८, ३०५-६, ४५२-६, परस्परेण भक्कादिदान-ग्रहणरूपः ५१९-३, ६४४-२३, ७११ १०६३-२४ १६, ८२९-१५ संभोगपञ्चक्खाण ७८३-१२ संपलियंकनिसण्ण = पद्मासनोपविष्ट संयतविरतपडिहयपच्चक्खायपावकम्म ७७७-८ ३१०-१२ संयमजातामायावत्तिय २७९-४ संपविट्ठ १५३-५ संयोग ३३१-१७, ३३२-१४ * संपाउण * संलव -संपाउणंति ५३०-२०, ५३१-१ - सलंवंति ७१८-२१ - संपाउणित्ता ७८६-१२ संलवण ५२९-१८,५४४-१० -संपाउणेजा संलवमाणी संपाउणणा ८७१-४ संलाव १३९-२, १४०-१०, २०२-४ संपाविउकाम २-४, ९३-४, ३१०-१४, संलेहणा ___९२-३, ९३-१२, १२६-४, ३७०-१ १२७-२२, १३३-१२, १३४संपिणद्ध २९४-१५, ४६१-२३, ७५४-९ २, १३५-११, १४५-१, संपुण्ण ५४५-२ २८१-२, ४५४-९, ४७९ - * संपेह २०, ४८१-२०, ४९४-१९, -संपेहित्ता ४५७-३, ७५७-३ ४९६-१७, ५५३-९, ५५७*-संपेहेइ ७९-६, १३१-१८, ४७७ १, ६४६-१७, ७३७-५, २०, ५१८-४, ८२९-१४ ७६०-१, ८०२-१५ - संपेहेति १९९-२, ५५८-५, संवच्छर ९८-२, १२६-४, १८६-१, ६४४-१२, ७२३-९ २५९-१, २६०-२, ८५३- संपेहेत्ता १३३-१४,४७७-२०,५१८-४ २१, ९३४-२१, ९३५-४ -संपेहेसि ९२-११ संवच्छरपडिलेहण ५४७-१४ संबद्ध ५४०-१५, ६०५-२, ६३८-११ संवट्टग २९३-११ संबंधि १३१-३, १३२-४, ४७४-११ संवयवात १७१-७ संबुद्ध ६४-१४, ८५-१५, ३१५-१, * संवर ८३२-८ -संवरेइ २८-३, ३५०-७ संभग्ग -संवरेजा ४११-१९, ४१३-१ * संभव -संवरेति ३५६-१५ -संभवति ७२२-१६ संवर ३३-११, ६५-१५, १००-६, संभव [जिण] ८७७-१० ४११-१९,४१३-१,७८३-११ संभंतिय ७५७-८ संवरियवलयबाहा ४५३-७ संभंतियवंदणय ७५६-१ संवरेमाण २६-१२, ३५८-७ संभारिय-संस्मारित ५५४-९ संवाह ६४२-२१ संभारियत्ता=सम्भारिकता १९२-६, संवाहमिारी] १७३-३ २०८-८ संविग्ग ४९४-१७, ४९६-१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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