Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 500
________________ सहो वियाहपण्णत्तिसुत्तंतग्गयाणं सहाणमणुक्कमो १५२३ सद्दो पिट्ठ-पंतीए पिट्ठ-पंतीए संत= सत् १३०-२३, ४६३-१, ५५१-७, संधिज्जमाण ५९-३ ७१५-१३ संधित संतत-°तय = सन्तप्त ९०-१५, ९१-१२, संधिपाल ५१९-२ १३३-३ संधिबंधण संतरं ४२०-२२, ४२१-१, ४४६-१३, संधिवाल ३०९-३ ४४७-२, ६३९-१९, ६४०- * संधुक्क ३, ११७२-१६, ११७५-२ -संधुक्केति ५२१-७ संतसारसावदेज ३५५-१३, ५१६-१७ संपउत्त १००-४,४५५-७, संताण ४६२-७ १०६६-१७ संताणतंतु संपगाढ २३१-२ संतिकम्म ५४८-११ संपद्वित-ट्रिय १९७-७, ३६२-१५, संतिकरी ११८७-१६ ३६३-१, ४७०-१५, ४७१संति[गिह १७५-१५ २,६९९-२ संति [जिण] ८७७-११ * संपडिवज संतिभाव% सद्भाव १०२४-९,१०२५-८, -संपडिवज्जइ ४५४-२१ १०२६-२, १०४७-४ -संपडिवति ८७-१२, ८०२-10 संथड १५-५, १२०-८, १२१-८ संपतं ६५१-२३ *संथर संपत्त ८०-५, ९३-३, १५४-१४, -संथरति ५६२-८ २४७-२२,३१०-१३, ३६३-संथरित्ता ९२-३, ३१०-११ १, ३७०-६, ५४६-१८, -संथरेइ ९३-१ ७०२-१९, ७३३-१२ -संथरेति ३१०-११ संपत्ति १२०-१२,१२१-१३, १२५-१९, -संथरेह ४७७-५ १२७-३,१२८-६, १६३-१३, -संथरेंति ४७७-७ ३३४-८, ६०५-६, ६५३-९ संथरिजमाण ४७७-१८ संपन्न ४५-१६, ९४-७, १०१-४, ५६२-३, ७२२-११ १०२-३, ३६६-२४, ४९७संथारग १०१-१, ३१०-११, ३११-३, १४, ७३५-१८, १०६०-७ ४७७-४, ५६२-८, ८३०-११, संपन्नया ४१४-६, ७८३-१५ १०६३-२१ संपयं ६५१-१० संथारय ९२-३, ९३-१ संपयोग १०६६-१७ संथुत संपराइय [कम्म] ३७४-७ संदमाणिया १६०-१, १६१-१०, १६३- संपराइयबंध ३७२-५ ५, २१७-१०, ३८२-११, संपराइया किरिया २९६-१४ संपराइया [किरिया] ७१-८, २७४-६, *संदिस २७७-१, ४८८-६, ८२२-१९ -संदिसंतु ४६६-१२, ४७०-७, | * संपरिक्ख ५६३-८, ७३०-१५ । -संपरिक्खित्ताणं ५३०-१२, ५३१-११ संथार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556