Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 489
________________ सहो १५१२ बिइयं परिसिटुं पिट्ठ-पंतीए सहो पिट्ठ-पंतीए सयणिज १२६-७, १३५-१३, १३६-१९, सयंभुरमणसमुद्द २६७-७, ५२३-२१, १४७-९, ५३७ तः ५४१ ५२४-८,५८९-१४ पृष्ठेषु, ६७३-१२, ७६०-३, सयंभुरमणसमुद्दतिरियलोयखेत्तलोय ५२७-४ ८०३-१ सयंसंबुद्ध पृ. १ टि. ९ सयणोवयारकलिय ५९५-१६ सया= सदा ६९-२०,७०-२१, १०९-१, सयदुवार ७३४-७ १५६-३, १५८-२, २३४सयपुप्फ ८९६-८ १३, २३५-१, ११८३-१५ सयपुहत्त ९८-१२, १.४१-६, सयाणीय १०५८-२ सर=स्वर १४९-१५, ६५६-५ सयसहस्स ३४-१९, ३५-८, ३७-५, ,, शर २०८-१४ ८४-१, १२२ तः १२५ पृष्ठेषु, ,,,,-वनस्पतिविशेष ८९५-३ १२९-११, १६९-२१, १७० =सरःसंशकालखण्ड ७१२-१७ ४, १७२-६, २५६-२०, ,,सरस् २१७-४, ३८२-३, ५३८२५७-५, २५८-६, २६०-५, ११, ७६३-१५, ७६४-८, ४०६-१३, ४६६-३, ५०४१३, ५९८-४, ५९९-२, सरण = शरण-आश्रयस्थान १४९-१५, ६०४-११,६१५ तः ६१९ तथा ३८२-५ ६२२ तः ६२५ पृष्ठेषु, ६२७-७, सरण =शरण-तृणमयावसरिकादि २१७-८ ..६४०-१२,६४६-१५,६७३- सरण-दय २-१ ४, ७१२-२,७७१-२, ७७५- सरथंभ ७६५-२१ २४, ८४४-१५, ८४५-१, सरदहतलायपरिसोसणया ३६०-१ ९६२-१५ सरपंतिया २१७-४, ३८२-३ सयसहस्स[खुत्तो] ७३९-१ सरप्पमाण = सरःसंज्ञककालप्रमाण ७१२-१७ सयसहस्सपुहत्त ९८-१४, ९९-३ सरथ = शरत् - मार्गशीर्षादि २८४-२१ सयसाहस्सिय ५४६-१३ सरय=शरदृतु ४५५-९, ६९८-२० सयसाहस्सी ३०७-७, ७१२-१७ सरय = शरक-निर्मथनकाष्ठ ५२१-६ सयसाहस्सीय १४७-२१ सरल = सरलवृक्ष ८९७-८ सयं = स्वयम् ८६-३, १३१-५, २०९- सरवण ६९१-१९, ६९२-४ १८, ३१३-२४, ४४८-१, स-रस ४६७-९,५१९-६, ५२४-३, ५२५-२४, ६४५-२० ५३७-१३, ७२५-१४ ७१७-७, ८०२-१३ सरसरपंतिया= सरःसरःपति २१७-५, सयंकड १५-१६, १६-४ ३८२-३ सयंगहियलिंग १३६-३ सरसरसरस्स=सर्पगत्यनुकरणशब्द ७०८-१८ सयंजल [विमाण] १७३-१८ सरस्सती-सरस्वती-गीतरतीन्द्राग्रसयंजुल , पृ० १६९ टि. ६ महिषी ५०२-१३ सयपभ , ५०३-१७ स-रह = सरथ ७३६-१८ संयंभु = स्वयम्भु - जीवशब्दपर्याय ८५७-६ । स-रहस्स ७७-७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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