Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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१५०२
सो
सन्निचित
सन्निहित सन्निपंचेंदिय
सन्निपचें दियतिरिक्खजोणिय
सन्निभ सन्निभप्पगास
सन्निमणुस्स
सन्निपंचेंद्रिय [तिरिक्खजोणिय ] सन्निपंचेंदियपढमसमयुद्दे सय सन्निपंचेंदियमहाजुम्मसय
सन्निमहाजुम्मसय
सन्निवडिय
""
पिट्ठ- पंतीए
२६१-९
२४७-१६
९३९-४, ९४७-४,
९५१-२०, ९६९-१७,
११६८-२०
सन्निवेसदाह सन्निवेसमारी
सन्निवेसरूव
बिइयं परिसि
सो
सन्निवेसवाह
सन्निवेससंटिय= सन्निवेशसंस्थित
विभङ्गज्ञानभेद
९०५ - १,
९११-१०, ९१८-१२, ९२२२३, ९२७-७, ९३६ - १४, ९३७-१६, ९४९-३, ९५०२३, ९५७-२०, ९६२-४, ९६५-२०
९६१-३
११६४-२२
११६४-५,
११८५-१०
४६१-६
६९१-२०
९१७-१७, ९२५-१०,
९२८ - १९, ९३८-७, ९४५
९, ९५३ -३, ९५७-२१
|११७१-११
४६०-८, ५३२-१०
सन्निवाइय[रोगायंक]
८६-१९, ४६४-८
९२-२
सन्निवात = सन्निपात समागम सन्निवातिय [नाम]
१०१६ - १६ ७७६-२०, ७७७-२
[भाव] [रोगायंक] ८३०-५ सन्निविट्ठ ३१२-१७, ३१४ – १०, ४६८–५,
सन्निवेस
५४८-४ १४–११, १३० १०, १४८ -८, २४९-४, २६३–१२, ४९५–२०, ४९६-१४, ६४२-२१, ६९११९, ६९२-४, ६९६–१६, ६९७-१, ६९८-४, ७४०-३ १७१-७
१७३-३
१६८-९
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सन्निसण
सन्निसन्न
सन्नि-सय
सन्निहि
सन्निहि पारि सन्नो उत्त
सपक्खि = सपक्षम्
सपज्जवसित - सिय २३६-३,
३३७-१५
३१२-१७, ४६९-३
४६८-१२, ५५५-४, ६४५-१६
११६७-१८
१७५-११
६०१-२, ६८१-१ १०३६-१४
१३४ - ११, १३६-२०,
१३७–९, १३८ - २३, १७०-३,
५९४-१ २३७-१,
३५१-५, ३७३ - २५, ३७४ -१, ३८०-१७, ३९२-१८, ३९४२३, ९८४-२३, ९८५-१ ६२९-१९ ८५-८, ६५२ - १०, १०६१-१९ ६७-५, २२८-१७, ८७७-३ १३४ – ११, १३६-२०, १३७3, १३८–२४, १७०-३,
५९४-१
सपज्जवसिया [दिसा]
सपडिकम्म
सडकमण
सपडिदिसिं
स- पत्तियं = सपात्रिकाम् स-पदेस
सपदेसुद्देस
स- परिग्गह स- परिवार
७५४-१८
२१२-६, २१९-१६, २२०-१,
२२१-८, २३०-३, २४२-१७,
२४६-२
२४७-४
२१६-४, ४१४-१२
११२ - १, १२४-१८, १२६-२१, ४५३ - २, ६७३-१४, ६७४
६, ७७०-२३ ५४६-१० ११५–१४, ६८७९ ४०६-१२, ४९७-२३, ५००७, ५०३-१०, ७१२-१२,
८६५-२५
पृ० १५७ टि० १४
स- पुरजणवय स- पुरिसकारपरकम
स- पुव्वावर
पिट्ठ- पंतीए
१७४-८
सपेहाए - स्वप्रेक्षया
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