Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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सहो
विमाणकारि
विमाणपत्थड
विमाणभवण
विमाणवण्णय
४६८-५
विमाणावास ३५ - ९, १२९–११, ५९९–१०,
६२३-२०, ६२४-१, ८४५-८
५०४-२०
४६०-८
विवाहपण्णन्तिसुतग्गयाणं सहाणमणुकमो
पिट्ठ- पंतीए
११, ६८४-५, ७४८-१५, ७५६-१४, ७६०-३, ७६६१५, ७८५ - २४, ७८६-१, ८००-८, ८०३-१
७४८-१४
२५१-७, ६२९-७
५४३-९
विमाणाव । ससयसहस्स
विमुक्क
विमुह = विमुख - आकाशास्ति
कायनामान्तर
* विमोह
- विमोहित्ता
- विमोहेज्जा
विमोहण या
वियक = वितर्क
विक्खण
वियभोइ
वियाभोगि
वियाभोति
वियड
वियडजाण
वियडजाणप्पवर
विडभोई - भोगि
faesias
वियडासय
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८५६-२१
४९१-७, ४९३-१
४९१–१०, ४९३-२
६६३-१३
१०६७-१३
४६१-१३, ४६२-५
पृ० ८१ टि० ८
पृ० ८१ टि० ९-११
पृ० ८१ टि०८
७६६–३
५४९-९
८१-१३, ८१-१४
४१७-७
७०२-१२, ७०४-२
१४८-७
वियड्डमाण
दियद्द = व्यर्द - आकाशास्तिकायनामान्तर
वियलकिड
वियसिय अरविंदकरा [सुयदेवया ]
वियाणय
बियार भूमि
८५६ - २१
६५३-१७
११८७ - १३
८१-६
३६३-७
सो
वियालग - लय = विकालक - महाग्रहविशेष
वियावत्त = वियाहित
वियोग
विरइ - रति
विरक्त = विरक्त - आच्छादितानाच्छादित
* विरम
- विरमंतु विरय
-
= स्तनितकुमार देवविशेष हिय
विरस
विरसजीवि
विरसमेह
विरसाहार
विरहका समय
विरहित
विरहिय
विरागया
* दिराव
-
- विरावेहिंति
विराहणा विराहय
* विराह
- विराहेजा
१४८५
पिट्ठ- पंतीए
७३५-११
२८०-५, ५१०-७, ७७७–८, ११४४-१६,
११६२-१४,
११६९-८
विरयाविरइ
११७१-२
विरयाविरय ५१०-७, ११४४-१६, ११६२
१५, ११६९-९
४७६-२०
४८१-१२
२९३-१४
४८१-११
१३५-१४
१२-८, ७२-२, ५६९-२१ ७६८- १३, ७६९-१२
२८३-१७, ३७९-२, ४८६ - २०,
५२८-१७, ५६९-१९, ६२०
२१, ७६८-५
७८३-१३
१७१ -१२, ५०३-३
१७७-५
विराहिय संजम
विराहिय संजमासंजम
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२५९-१२, २५९-१८ ४६७-१, ७९९-२३ २७३-३, ५०६-१२, ११७१-२
५९४ - १०
६५८-१३
१०२७-२
१३९-२१, ३६२-१६, ३६३-२,
२९४-३
३६४-९, ३९८-३ २३-१०
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