Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 463
________________ १४८६ बिइयं परिसिटुं सहो पिट्ठ-पंतीए । सद्दो पिट-पंतीए विराहियसामण्ण ७४०-१४, ७४१-२ | विवेग ६५-१६, २९२-६, ३१६-१४, विराहिया ३६३-१८ ७७९-१२, ७८३-१४, ८५६विलक-लय = पक्षिविशेष २९६-६, __ ५, ८५७-१९, १०६७-१९ ६०१-१९ विवेगारिह १०६०-२० विलवमाण ४६०-१४ विस ३३४-७, ७०८-१३ विलास ४६२-६, ४६९-५ *विसज्ज विलिअ-व्यलीकित-सञ्जतव्यलीक ७२५-१५ -विसजित्ता ३१०-११, ३११-३, विलिहमाण ३५३-१९ ४५८-१० विलिहिजमाण १२९-१२ -विसजेइ ४५८-१० विलीण ४६०-४ -विसजेति ३१०-१०, ३११-३ * विलुंप विसहमाणी ३३४-८ -विलुपित्ता ३५८-२२ विसऽट्टया विलेवण ५६२-२ विसद ५३८-९ विल्लि ८९५-२० विसपरिगय ३३४-७ विव= इव ९१-४, १९७-९, ७४०-७, विसप्पमाणहियय ८२-१ १०६८-२४ विसभक्खण[मरण] ८४-२० विवच्चास १६२-१२, १६७-५, १८९-८ विसम-विषम १४३-१४, १६२-५,२१२विवजग ३५९-८ १४, २९४-३, ७१५-९ विवजिय ३५९-८, ८३०-१० ,,,-आकाशास्तिकायनामान्तर विवडिय ३०५-१३ ८५६-१९ विवड्ढणकर ५३९-२४ विसमजोगि ९७०-२०, ९७१-४ विवढिकर पृ० ५२९ टि. १० विसमनयण २९४-१६ विवर=विवर-आकाशास्तिकायनामान्तर विसमसंधिबंधण २९५-१ ८५६-१९ विसमाउय = विषमायुष्क १०८९-१०, विवरीय ८४३-१५ ११३५-१८ विवाग ४४८-१७, ४४९-७, ४६२-१७ विसमाय = विषमक -विषम १०८९-५, विवागविजय १०६७-६ १०९०-१३ विवाद १३९-११, १४०-११,५८७-१७ विस-मेह __ २९३-१५ विवाहकज ५९२-१२ विसमोववन्नग १८-१४, १०८९-१०, विवाहपन्नत्ति ११८३-२२ १०९०-१७, ११३५-१७, विवित्त ११३७-९ विवित्तजीवि ४८१-१२ विसय = विषय-सम्भावना ७१०-४ विवित्तसयणासणसेवणया ७८३-११, ,, ,, - इन्द्रियादिशेयपदार्थ १०६३-४ १०६३-१ ,, = ,, - कामभोग ४६२-१०, ४६३विविह ८६-१९, ४६१-१३, ४६४-८, १३, ४६४-२२ ५४२-१, ७१४-२३, ८३०-७ = -गोचर १२०-११, १२१-१२, विविहसत्त २८५-१९ १२४-८, १२५-१९, १२७-२, " - " गापर " " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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