Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 459
________________ १४८२ बिइयं परिसिटुं सदो पिट्ठ-पंतीए । सहो पिट-पतीए ९, ४७५-११, ५३७-१२, विजुकुमार] ७७३-६ ५५३-८,७३७-६, ७६४-१ विजुकुमारिंद ,, = , - सुवर्णकुमारदेवविशेष विजुकुमारी १७०-१३ ६७६-१८ विजुमेह २९३-१५ चित्तपक्ख-वाचत्रपक्ष-, १७६-१८ विजया १७१-३, २४९-१३ विच्छड्डिय १००-४ विजुयायंत १४८-९ * विच्छिद विजुलयाचंचल ४६१-६ -विच्छिदिहिति ७३४-२० विज्झडिय २९५-५ विच्छिदमाण ३५३-२० विडव = विटप-विस्तर १४९-११ विच्छुय - जातिआसीविस ३३४-३ * विडंब विच्छेद पृ० २५९ टि.४ -विडंबेइ १४८-२ ॐ विजय १२६-१२,४५७-८,५१९-९, विडंबित विड्ड =वीड-व्रीडावत् विजय[विमाण] . २५६-१६ विणओवयार ४६२-५ , [देव] ११२-९, २२३-१७, ८२२-३, विण? ७१५-२१ ९५९-२२, ९६०-६, ९६७ - विणढतेय ७१९-९ २४, ९६८-५ विणमित १५-२ ,, [गाहावइ] ६९४ तः ६९७ पृष्ठेषु, विणय ३-१, ८७-४, १०३-५, १२६-६, ७३१-८ १३१-४, १३७-१४, १९७-२०, विजयअणुत्तरोववाइय ३२१-२०, ३२२-२४, २२१-२३, २९४-१३, ३०४-९, ३२३-२४ ४५०-५, ४५१-१५, ४५३-२, विजयअणुत्तरोववातिय[कप्पातीतवेमाणियदेव] ४६६-१७, ५४१-१७, ५५६-१५, ९५९-१९ ५६१-१०, ७०२-१४, ७२६-२, विजयवेजझ्या = विजयवैजयिकी ७४०-५, ८०२-१, ८०४-२७, पृ० ५४६ टि. ६ १०६४-३, १०६६-७, ११८३-१५ विजया = विजया-बलीन्द्राप्रमहिषी ४९९-२२ विणयसंपन्न १०१-५, १०६०-८ ,, ,,- इशालग्रहानमहिषी ५०२-२३ विणयोणय ४५२-१५ **विजाण विणा ७४४-२ -विणाणित्ता ५४८-३, ६४३-७ विणासण ६९९-१९ विजा ८७९-१९, ११८७-१८ विणिग्गय ४६०-१२ विजाचारण ८७९-१६, ८८०-४, ८८१-३ विणिग्गह १०६३-५ विजाचारणलद्धि ८७९-२० विणिघाय २१२-२ विजाभग[देव] ६८३-९ विणिच्छय ४५७-७, ५५२-९ विज्जु% विद्युत्-चमरेन्द्राग्रमहिषी ४९७-२१ विणिच्छिय? १००-९,५४३-१, ६८९-१० ,,,,- सोमलोकपालाग्रमहिषी ५०४-२ विणिद्भुणमाण ७२०-१५ विजुकुमार १७०-१३, १७६-१९, ७४०- विणिम्मुयमाण १४९-४ २०, ७९०-१४ । विणिम्मुयमाणी ४६७-१,४७५-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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