Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text ________________
૪૮૦
विइयं परिसिट्ट पिट्ठ-पंतीए । सहो
पिट्ठ-पंतीए ९१३-१५, ९१४-१०, ९१८- विउछउम
२-२ १४, ९१९-३, ९२३-१८, विउब्भावेमाण
१४८-८ ९२४-६,९२७-१७,९२८-१३, अविउत १०५-१५, १३१-५, २९९-९, ९३० तः ९३७ तथा ९४० तः
३५५-१२, ४५०-२४, ५१८९४२ पृष्ठेषु, ९४६-२०, ९६१
१२, ६९४-१५, ७०२-१०, ६, १०१२-१७, १०५७-७,
११८३-१६ ११४४-२६ विउलधण
१३०-२२ वाससहस्साउय ५३०-१८, ५३१-१८ विउलभोगसमितिसमन्नागय
६४६-८ वाससंठिय = वर्षसंस्थित-क्षेत्र
* विउव्व संस्थित, विभङ्गज्ञानभेद ३३७-१५ -विउव्वइ ५४-१२, १४७-२२, ३०३-७; वासहरसंठिय= वर्षधरसंस्थित
६५६-११, ८१२-२२, ८१३-२ विभङ्गज्ञानभेद
३३७-१६ -बिउव्वंति २६८-६, ६५३-९, ६७३-४, वासा वर्षा
१७४-६ वासाण= चतुर्मासप्रमाणवर्षाकालस
-विउर्वति
१२८-१३, ६०५-३ म्बन्धिन्
-विउवित्तए १२४-५, २०९-६, ४९७वासारत्त
४५५-८
२२, ५०३-१०, ६०४-१९, वासावास ६९२-१०, ६९३-७, ६९४-३
७५५-२४ वासिवर्षिन्
६६२-४ | -विउव्वित्ता १६०-४, ६०५-३, ६८५-४, वासी = वृक्षविशेष पृ० ८९९ टि. १
८२०-७ वासुदेव
५४३-१० -विउव्वित्ताणं ३०५-९, ३०६-१८, वासुदेवमायरो= वासुदेवमातरः ५४३-१०,
७८०-८ ७६२-२३ -विउब्विय
९६-१२, ९७-५ वासुपुज [जिण] ८७७-१० -विउव्विस्सति
१२४-३, ६५३-९, वाह
१७४-७ वाहण १००-३, १२९-११, ५१६-१५, -विउव्विस्संति १२४-८, ६०५-७
५४०-३, ७०७-४, ७३५-२ -विउव्विस्सामि ८१२-२१, ८१३-१ वाहणा= उपान
-विउव्विसु १२७-८, १२८-६, १६३-२१, वाहय%वाहक-प्रवाह १९७-८
६०५-६, ६५३-९ वाहि २९३-१५, २९५-३, ४६१-१४ -विउव्वेत्ता
५४-१२ वाहिणी ७२५-१७ विउव्वणा
११९-२ कवि ४-३, ५-११, ८-६, १०-१५ विउव्वमाण ५९३-१, ६०४-२१, ६०५-१ * विआगर
विउव्विया [रयणा
८२०-२२ -विआगरित्तए
७५५-२२ विउसग्गारिह
१०६०-२० * विउक्कम
विउस्सग्ग
६५-१६, ६६-१ - विउक्कमंति १०९-८, २८५-५, ८४४-१८ विओसग्ग
१०६४-४, १०६७-५९ *विउ वि + त्रुट्
विओसमण = व्यवशमन
५९६-३ -विउद्यामि ३६२-१३ । विओसमणया
७८३-१०
t
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556