Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 455
________________ वारि १४७० बिइयं परिसिटुं सहो पि?-पंतीए सद्दो पिट्ठ-पंतीए वाणमंतरी १७५-१ वायव्वा [दिसा] ४८५-२०,४८७-५ वाणारसी १६६-५, १६७-२, वाया = वाच् १०३-८ १६८-२ वायाण = वनस्पतिविशेष ८९५-१९ वाणियग्गाम ४२०-१४, ४९३-२०, वायुकुमार १७०-१३ ५३३-८, ५५३-१८, ८२८ वायुभूति १२२-८, १२३-४, १२४-९, २३, ८२९-१ १२९-१ वात= वात ४६-२०, ४७-१६, १५०-५, वारअ= चारक १८८-५, १८९-८, २६१वाराणसी ७१४-८ १०, २९३-११, २९५-५, १३५-६, ४७५-१ ३३६-१७ वारिधार वातपतिहित ४७-१६ वारुणी [दिसा] ४८५-२०, ४८७-४ वातपलिक्खोभ = वातपरिक्षोभ-कृष्ण वालव्याल ८६-१८, ४६४-७, राजिनामान्तर २५३-९ ७०९-९ वातफलिहा- वातपरिघा वाल =वाल ४७२-७ कृष्णराजिनामान्तर २५३-१ वाल=पाल १७२-१० वाति= वादिन २७९-२१ वालग्ग = वालाग्र-मानविशेष २५७-१९, वातियवातिक ८३०-६ २६०-१९, २६१-१ वादि-वादिन् २८०-४ वालग्गकोडि २६१-९ वालग्गपुहत्त २५७-१९ वानर [संठित =वानरसंस्थितविभङ्गज्ञानभेद ३३७-१८ वालाग सन्निवेस] ४९६-१९ २१७-४ ४९६-१३ वाबाहाव्याबाधा-प्रकृष्टबाधा ३५३-२१ वालिधाण वालु = देवविशेष १७३-११ ६८२-८, ७०१-९, ७०२-५, ७१९-२६, ७२०-४ वालयप्पभपुढविकाउलेस्ससुक्कपक्खियखुड्डाकलियोगनेरतिय ११११-४ *वाम . - वामेति ४८-४, १६२-१० बालुयप्पभपुढविनीललेस्सखुड्डा- वामेत्ता ४८-४ कडजुम्मनेरतिय ११०७-९ वाम १३५-२४, १४८-१, १५०-१८, वालुयप्पभा [पुढवी] २२२-२०, ४२२ तः ४६९-३. ७२६-१८, ७२७ ४२८ पृष्ठेषु, ४३०-१, ४३३वाय=वात ६२-३, १७१-६, ४६०-१३; २, ४३४-१, ४३५-२, ४३६४६७-१०,४९३-६,७८९-४ २, ४३७-४, ४३९-५, ४४१वायकुमार पृ० १९. टि. १ ५,४४२-२, ६१९-१४, ६७९वाय[कुमार] ६, ७३८-९, ८७१-९, ९१५वायकुमारी पृ० १९० टि. १ १४, ११०७-८, ११७८-५ वायणा वालुया ४६३-१८, ५२१-५, ५३७-१६, वायमंडलिया ७१७-२२ ७१२-१६ वायमाण: वामान-वहमान ८१८-२२ । वालुंकी ८९९-१७ वालाय " वापी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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