Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 434
________________ मेरा मेहण वियाहपण्णत्तिसुत्तंतग्गयाणं सहाणमणुक्कमो १४५७ सहो पिट्ठ-पंतीए । सद्दो .. पिट्ठ-पंतीए मुंडभाव ६७-११ मेत्ती=मात्रा १२६-७ मुंडाविय ८७-३, ७१६-१० मेत्तीए=मात्रया ३००-३ २७८-९ मूल = मूल १११-४, १५९-१५, २६२- * मेल ७, २७४-१८, २८५-८, -मेलायंति १०२-१२ ३५९-८, ४६४-४, ४८४- मेह = मेघ २१२-१, २९३-१४, २१, ५०६-१६, ५२०-१४, ७२१-१३ ७७४-२२, ७७५-१, ८९३- मेहराइ-मेघराजि-कृष्ण४, ८९५ तः ८९९ तथा ९०१ राजिनामान्तर २५३-८ तः ९०३ पृष्टेषु मेहला ६०२-११ " = मूल-आसन्न ३७७-७ मेहा= मेधा ११८७-१४ मूलओ= मूलतः ७६३-२४ ,, = मेधा- चमरेन्द्राममहिषी ४९७-२१ मूलग-वनस्पतिविशेष ८९४-१२, मेहावि ७५४-१७ ८९५-२०, ९०१-१२ महिल १०४-१३ मूलगजीव ८९१-६ ४५-११, ९९-६, ३५८-१५, मूलगजीवत्ता ८९१-१८ ५८७-१३, ७८४-१२ मूलगुणपच्चक्खाण २८०-९ मेहुणवत्तिय ९९-१,४९८-१९, मूलगुणपञ्चक्खाणि २८१-५ ४९९-७,५०२-२१,५०४-५, मूलगुणपडिसेवमाण १०२१-१७ ५९५-७ मूलगुणपडिसेवय १०२१-१५, १०४५-८ मेहुणसण्णा ३०२-३,९०६-१६ मूलजीवपडिबद्ध २८५-१३ मेहुणसण्णोवउत्त ६१६-१० मूलजीवफुड २८५-८ मेहुणसन्नोवउत्त ५१०-१७ मूलत्ता ५१३-९, ८९०-१२, ८९४ तः में ढियगाम ७२९-२७ ८९९ तथा ९०१ तः ९०३ पृष्ठेषु मेंढियग्गाम ७२७-२२, ७२८-३, मूलपगडिबंध ८०६-१२ ७३०-९, ७३१-११ मूलय = वनस्पतिविशेष २८५-१६, * मोअ%मोचय् -मोएइ ३१०-१० मूलाबीय २५९-८ - मोएति ७३१-४ मूलारिह १०६०-२१ मोउद्देसय ४९९-१८,५०१-२, मूलुद्देस ८९२-२ ५०३-१३, ७५०-७ मूसा = मूषा - स्वर्णादितापनभाजन ५३८-७, मोएजय = देवविशेष १७४-११ ७०८-१३ मोकली ८९९-१९ मेइणितल १४८-४ मोक्ख ३२-७, १००-६, ४७३-६ मेघघणसनिगासघनमेघसदृश ९२-२ मोक्खकंखिय . ५५-३ अमेत्त = मात्र १२१-१२, २५७-१९, मोक्खकामय ५५-२ ...... २९५-८, ३३४-७, ५४०-३, मोक्खपिवासिय ५५-४ मोगली . पृ० ८९९ टि. ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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