Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 447
________________ सद्दो १४७० बिइयं परिसिटुं पिट्ठ-पंतीए । सद्दो पिट्ठ-पंतीए वइस्सदेव = विश्वानर ५२१-१३ वच्च = वर्चस् ७२८-१२ वई = वाच् २९-१४ वचंसि= वचस्विन , वर्चस्विन् १०१-६ * वक्कम वच्छ = वक्षस् ३०५-४ -वक्कम ५२-१०, ७४४-२ वच्छ जणवय] ७२१-५ - वक्कमति ५२-११, ७४३-९ वज = वज्र १४९ तः १५३ पृष्ठेषु - वक्कमंति १०९-८, २८५-५, ८४४- ,,= वर्ज-अवद्य ७२१-११ १८, ९०१-१४ ,,= वर्ज १३-८, १९५-२०, २३८वक्कममाण ५२-१०, ५४३-६,५९१ ३, ३३७-१०, ४६६-१५, १६, ७६२-१६, ८५८-५ ५४५-१६, ६०३-४, ७४०वक्कल ५२१-१० २०, ८१२-४, ९१८-१३, वकंति ५०७-८,५१३-७, ६०३-२, १०३४-३, १११५-३ ६०४-५,६०६-५,८३५-१४, वज जणवय] ७२१-५ ८९०-१३,९३०-७, ११०४- वज्जकंद २८५-१७ १८, ११०५-९, ११०६-९, वजपाणि १४६-१,७४८-१०, ७५५-१४ १११२-५,११३५-६,११५५- वजरिसभनारायसंघयण २-८ ४, ११७२-१२, ११७५-८ वजाहिवति १५२-१८ वकंतिकाल = व्युत्क्रान्तिकाल-विरहकाल वजि ३०४-१, ३०६-१२ २२४-१९ वजिय ५९३-६, ६८५-२०, ८२१-१८, वकंतीपद ७२-३ १०९३-२० वकंतीभेद ६०३-१५ वज्झ = वध्य ५५-१४, ५९-१७, ७३७ वग% वृक १६४-२० तः ७४० पृष्ठेषु, १११५-१०, *वग्ग १११६-१३, ११३५-३ -वग्गइ १४७-२२ * वह वग्ग-वर्ग १६६-२०, १६७-३, १६८- - व ८०-६, १५७-१ -वति १५६-११, ८१९-१७ ८९०-५, ८९३ तः ९०३ पृष्ठेषु ज-वति ५१६-२०,७७४-१८,८३०-२ ३६४-१६ -वहिस्संति ७८१-१३ वग्गणा १८१-६, २०२-१४ - वर्दिसु वग्गुवाच ५३९-१८, ५४०-६ ४९८-८,५३८-६ वग्गु[विमाण] १६९-११, १७४-१७, जवट्टमाण ३७-११, १५६-१२, ३०३ १७९-११ १९,४१६-५,५८६-३,६५०वग्गुरा ४७१-३,५३३-१६ १२, ७२८-२२, ८२०-१८ वहमाणी ५४६-१२ वग्गुली ६५४-४, ६५५-२० वय = पट्टक ९२-३, १४५-७, १४७-७ वग्गुलीकिच्चगय ६५४-५ वटवेयडूपव्वय ४१७-७ वग्घ १६४-२०, २९६-३, ४८२-१८, वह [संठाण] ६७७-८,९७५-१८, ६०१-१७ ९७६-४, ९७७-५, ९७८-९, बरघारियपाणि १४५-९ ९७९-१, ९८१-१, ९८२-६ "वल्क वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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