Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 377
________________ १४०० बिइयं परिसिटुं सद्दो पिट्ठ-पंतीए | सद्दो पिट्ठ-पंतीए परंपरोववन्नाकण्हलेस्सभवसिद्धिय ११४०-१३ * परिकह * पराइ = परा+जि - परिकहित्तए २२१-५ -पराइजइ ५९-१६ - परिकहेइ ८०-११, ८५-२० -पराइणइ ५९-१५ - परिकहेति ७११-१५,७५७-२,७६९-४ -परायिणति ५९-१६ - परिकहेहि ७०९-१३, ७१०-१२, * पराजय = परा+जि ७११-१० -पराजइत्था ३०४-१,३०६-१२ - परिकहेंति १०३-१२ * पराजिण = परा+जि * परिक्लेिस -पराजिणइ ५९-२१ -परिकिलेसइत्ता १४-१३ -पराजिणित्तए ३०५-१० -परिकिलेसंति पराणीय ५४-१० परिकिलेस ४६२-१६ * परामस परिकुवित १५३-१२ -परामसइ ७२२-२ परिकुविय १३७-७, १५०-१०, ३०६-७ - परामसंति ७२२-१४ परिक्खय = परिक्षय २७५-२० -परामसिय १९३-१३ परिक्खित्त ३०५-६, ३०९-७, ४५२-१३, * परामुस ४५८-६,४५९-१०,४६८-६, - परामुसइ १४७-१२, १४९-३ ४७१-३, ४७२-२, ५३३-१६ - परामुसति २०७-१४,३०९-२१, परिक्खेव ८२-१६, ८४-३, ११२-७, ३१०-२, ८०७-१० १७०-१, २४८-३, २५२-१, -परामुसंति २७०-१२, ५३०-१०,५३१. ८२०-२० - परामुसित्ता २०७-१४, ३०९-२१, १०, ६४०-११, ६७३-६, ३१०-२ ७६७-१६, ८८०-२ परिखा २१७-७ परायग परिगत-गय ३३४-७,३५०-१६, ३५०परारंभ ११-८, १२-४ २०, ३५१-१, ४५१-११, * परावत्त ४७६-२३, ७१८-८, ७२६-परावत्तइ ४१४-१७ ११, ७२८-११ - परावत्तेइ ३१०-७ परिग्गह ४५-११, ६१-७, १२६-१२, परासररूव १६४-२०, १६५-११ २८०-१३,३१०-१७, ३५८पराहिकरणि =पराधिकरणिन् ७४५-१२ १६, ४०८-५, ५८७-१३, परिकड़िढजमाण ७५८-२४ ७८४-१२, ८१६-९ * परिकप्प परिग्गहया -परिकप्पेह ३०४-६ परिग्गहवेरमण २९२-६,३१३-१३, ७७९-परिकप्पति ३०४-११ १२, ८५६-४ परिकम्मिजमाण २३५-५ परिग्गहसण्णा ३०२-३, ५९०-२२, ८७५परिकम्मिय १५, ९०६-१७ परिकम्मेमाण १७५-१६ । परिग्गहसण्णापरिणाम . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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