Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृतागसूत्रे मूलम्-णस्थि साह असाह वा, णेवं सन्नं णिवेसएं ।
अस्थि साहू असाहू वा, एवं सैनं णिवेसए ॥२७॥ छाया-नास्ति साधुरसाधुर्वा नै संज्ञा निवेशयेत् ।
अस्ति साधुरसाधुर्वा एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥२७॥ अन्वयार्थः-(गस्थि) नास्ति-न विद्यते (साहू) साधुः (असाहू वा) असा. पुर्वा नास्ति (णेवं सन्नं णिवेप्सए) एवम्-ईदृशी संज्ञा-बुद्धि न निवेशयेत्-न ऐसा कहा गया है । जो जीव कमों के अधीन हैं वे अनेक स्थानों का अपने कर्मों दय के अनुसार अनुभव करते हैं, किन्तु निष्कर्म जीव का स्थान तो लोक का अग्रभाग ही है ॥२६॥ 'णत्यि साहू असाहू वा' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'त्यि साहू-नास्ति साधुः' न कोई साधु है, 'वा असाहू-वा असाधुः' अथवा न कोई असाधु है 'णे स नं निवेसएनैवं संज्ञा निवेशयेत्' इस प्रकार की बुद्धि धारण करनी उचित नहीं है, अर्थात् संपूर्ण चारित्र गुण का अभाव होने से कोई साधु नहीं है और जब कोई साधु ही नहीं है, तो उसके प्रतिपक्ष असाधु की भी सत्ता नही है ऐसा समझना भ्रम पूर्ण है किन्तु 'अस्थि साहू असाहू वा -अस्ति साधुरसाधु र्वा' साधु है और असाधु भी है एवं सन्नं निवे. सए-एवं संज्ञा निवेशयेत्' ऐसी ही समझ धारण करनी चाहिए ॥२७॥
अन्वयार्थ--न कोई साधु है, न असाधु है, इस प्रकार की बुद्धि ઉર્ધ્વ ગતિ પ્રાપ્ત થાય છે. તેમ કહેવામાં આવ્યું છે. જે જીવ કને આધીન છે, તેઓ અનેક સ્થાને પિતાના કર્મોદય પ્રમાણે અનુભવ કરે પરંતુ નિષ્કર્મ જીવનું સ્થાન તે લેકને અગ્રભાગ જ છે. ૨૬ાા
'णत्थि साहू असाहू वा' त्याह
शाहाय---'णत्थि साहू-नास्ति साधुः' / साधु नथी, 'वा असाहवा असाधुः' अथवा ई असाधु नथी. 'णेवं सन्नं निवेसए-नैव संज्ञां निवेश ત' આ પ્રમાણેની બુદ્ધિ ધારણ કરવી એગ્ય નથી. અર્થાત સંપૂર્ણ ચારિત્ર ગુણને અભાવ હોવાથી કોઈ સાધુ નથી, અને જ્યારે કોઈ સાધુ જ નથી તે તેના પ્રતિપક્ષરૂપ અસાધુની સત્તા પણ નથી. એમ સમજવું ભ્રમમૂલક छे. परंतु 'अस्थि साहू असाहू वा-अस्ति साधुरसाधुर्वा' साधु छ, भने असाधु पण छ, “एवं सन्नं निवेसए-एव संज्ञां निवेशयेत्' मा प्रभान सभજણ રાખવી જોઈએ. ર
અન્વયાર્થી--કોઈ સાધુ નથી તેમ કઈ અસાધુ નથી. આવા પ્રકારની
श्री सूत्रतांग सूत्र : ४